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________________ ४८२ क्षपणासार एक भागमात्र द्रव्य रह्या ताकौं द्वितीय पर्वके ऊपरि जो सर्व स्थिति ताका अन्तविष अतिस्थापनावलो छोडि सर्व निषेकरूप जो तृतीय पर्व तिसविर्षे दीजिए है। तहां तिस द्रव्यकौं तृतीय पर्वमात्र गच्छका भाग देइ तहां एक भागविर्षे एक घाटि गच्छका आधा प्रमाणमात्र विशेष जोडै जो होइ तितना द्रव्य पुरातन गुणश्रेणिका शीर्षके अनंतरिवर्ती जो निषेक तिसविर्षे दीजिए है। सो यहु पुरातन गुणश्रेणिशीर्षविषं दीया द्रव्यतै असंख्यातगुणा घाटि है। बहुरि ताके ऊपरिचय घटता क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है। ऐसे अन्त कांडककी प्रथम फालि पतन समयविर्षे द्रव्य देनेका विधान कह्या। याही प्रकार अन्त कांडककी द्विचरम फालि पतनपर्यन्त द्रव्य देनेका विधान जानना । बहुरि अन्त कांडककी अन्त फालिके द्रव्य देनेका विधान कहिए है किंचिदून द्वयर्ध गुणहानिगुणित समयप्रवद्धमात्र अन्त फालिका द्रव्य है। ताकौं असंख्यातगुणा पल्यका वर्गमूलमात्र पलयका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां एक भागमात्र द्रव्यकों वर्तमान उदयरूप जो समय तारौं लगाय सूक्ष्मसांपरायका द्विचरम समयपर्यन्त जो प्रथम पूर्व तिस विषै दीजिए है। तहां प्रथम निषेकवि स्तोक, द्वितीयादि निलेकनिविर्षे असंख्यातगुणा क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है। तहां सर्व गणकार शलाकानिके जोडका दव्यों देड अपनी अपनी गणकार शलाकाकरि गुणै निणेकनिविणें देने योग्य द्रव्यका प्रमाण आवै है। बहुरि अवशेष बहुभागमात्र द्रव्यका सूक्ष्मसांपरायका अन्त समयसम्बन्धी निषेकरूप जो द्वितीय पर्व तिसविौं दीजिए है । यहु द्विचरम विषौं दीया द्रव्यतै असंख्यात पल्य वर्गमूलकरि गुणित जानना। ऐसे देय द्रव्यका विधान कया । दृश्यमान द्रव्यका विधान भी यथासंभव जानना ।। ५९६ ॥ उक्किण्णे अवसाणे खंडे मोहस्स पत्थि ठिदिधादो । ठिदिसत्तं मोहस्स य सुहुमद्धासेसपरिमाणं ॥५९७॥" उत्कीर्णेऽवसाने खंडे मोहस्य नास्ति स्थितिघातः । स्थितिसत्त्वं मोहस्य च सूक्ष्माद्धाशेषपरिमाणं ॥५९७।। सं० चं०-- या प्रकार मोह राजाका मस्तक समान जो लोभका अंत कांडक ताका घात करते संतै अव मोहका स्थितिघात न हो है । अव सूक्ष्मसांपरायका जेता काल अवशेष रह्या तितना ही मोहका स्थितिसत्त्व रह्या है सो अनुसमयापवर्तमान सूक्ष्म कृष्टिरूप अनुभागकों प्राप्त हो है, ताके एक एक निषेककौं एक एक समयविषै भोगवता संता सूक्ष्मसांपरायका अंत समयकौं प्राप्त हो है ॥५९७।। णामदुगे वेयणीये अड-वारमुहत्तयं तिघादीणं । अंतोमुहुत्तमेत्तं ठिदिबंधो चरिम सुहमम्हि ॥५९८।। १. तम्हि ठिदिखंडए उक्किणे तदो पहुडि मोहणीयस्स णत्थि ठिदिघादी । जत्तियं सुहुमसांपराइयद्धाए सेसं तत्तियं मोहणीयस्स ठिदिसंतकम्म सेसं । क० चु०, पृ०८७२ । २. जाधे चरिमसमयसुहुमसांपराइयो जादो ताधे णामा-गोदाणं ट्ठिदि बंधो अट्ठमुहुत्ता । वेदणीयस्स ठिदिबंधो बारस मुहुत्ता । तिहं धादिकम्माणं ठिदिबंधो अंतोमुहुत्तं । क० चु०, पृ० ८९४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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