________________
प्रस्तावना
आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी सम्यग्दर्शनचरनगुत पाय कुकर्म खिपाय ।
केवलज्ञान उपाय प्रभु भये भजौं शिवराय ॥१॥ जिनवानीके शानतें होत तत्त्व श्रद्धान ।
चरण धारि केवल लहै पावै पद निरवान ॥२॥ नेमिचन्द आह्लादकर माधवचंद प्रधान ।
नमौं जास उजासतें जाने निज गुणठान ॥३॥ लब्धिसारकौं पायकै करिक क्षपणासार ।
हो है प्रवचनसार सो समयसार अविकार ॥४॥ औसैं मंगलाचरण करि लब्धिसारके सूत्रनिका भाषारूप व्याख्यान करिए है ताका प्रयोजन कहा? सो कहिए है
श्रीमद्गोम्मटसार शास्त्रवि जीवकांड कर्मकांड अधिकारनिकरि जीव अर कर्मका स्वरूप प्रगट कीया ताकौं यथार्थ जानि मोक्षमार्गविर्षे प्रवर्तना । जात आत्महित मोक्ष है तिसहीके अथि विवेकी जीवनिका उपाय है । सो मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन सम्यक्चारित्र है, सम्यग्ज्ञान भी मोक्षमार्ग है सो सम्यग्दर्शनका सहकारी ही जानना । तहां सम्यग्दर्शन तीन प्रकार औपशमिक १ क्षायोपशमिक २ क्षायिक ३ । बहरि सम्यकचारित्र दोय प्रकार देशचारित्र १ सकलचारित्र २। तहाँ देशचारित्र तौ क्षायोपशमिक ही है अर सकलचारित्र तीन प्रकार है-क्षायोपशमिक १ औपशमिक २ क्षायिक ३। सो असे सम्यग्दर्शन सम्यकचारित्रकी लब्धि भएं केवलज्ञानकों पाइ तहाँ सयोगी अयोगी जिन होइ सिद्धपदकौं प्राप्त हो है। सो इनि सबनिका स्वरूप नीकै जान्या चाहिए, जात एई आत्माके प्रयोजनमत कार्य है, तातै इनिकौं होते पूर्व भए कर्मनिके बंध उदय सत्त्वकी कैसी कैसी अवस्था हो है अर जीवका परिणमन कसैं कैसे हो है ? इत्यादि विशेष जानना युक्त है। बहुरि याकौं जान चौदह गुणस्थाननिका भी स्वरूप विशेषपने नीके जानिए है। अर जीव कर्मादिकी सर्व चर्चानिविषै गुणस्थाननिकी चर्चा प्रधान है, तातै इहां तिन
औपशमिक सम्यक्त्व आदिका वर्णन अवश्य करना असा प्रयोजन विचारि उद्यम कीया तब हम यंत्रादि रचना सहित लब्धिसार नाम शास्त्रका मूल गाथानिका एक पुस्तक देख्या। तहां तिन औपशमिक सम्यक्त्वादिकनिका विशेष वर्णन जानि तिनि गाथानिका भाषारूप व्याख्यान करनेका विचार भया । बहुरि लब्धिसारकी टीकाके पुस्तक देखे, तहां औपशमिक चारित्रका वर्णन पर्यंत गाथानिहीकी संस्कृत टीकाकरि समाप्त करी । अवशेष क्षायिक चारित्रादिकका वर्णनरूप गाथानिकी संस्कृत टीका नाहीं । बहुरि एक क्षपणासार नामा जुदा ग्रंथ शास्त्र ताके पुस्तक देखे तहां गाथा तो नाहीं अर संस्कृत धारारूप ही क्षायिक चारित्रादिकका वर्णन है। सो याके अर्थका अर तिनअ वशेष लब्धिसारकी गाथानिके अर्थका प्रयोजन समानसा देख्या, सो अस अवलोकि यह विचार कीया जो औपशमिक चारित्र पर्यंत गाथानिका व्याख्यान तौ संस्कृतटीकाके अनुसारि करना अर अवशेष गाथानिका व्याख्यान क्षपणासारके अनुसारि करना सो औसै अनुसार लीए लब्धिसारकी गाथानिका संक्षेप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org