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क्षपणासार
स० चं० -तहां ही तीन घातियानिका स्थितिबंध पृथक्त्व मासप्रमाण है । स्थितिसत्त्व यथा योग्य संख्यात हजार वर्षमात्र है । बहुरि तीन अघातियानिका स्थितिबंध यथायोग्य संख्यात वर्ष मात्र है । स्थिति सत्त्व यथायोग्य असंख्यात वर्षमात्र है ।। ५६२ ।।
लोहस्स पढमचरिमे लोहस्संतोमुहुत्त बंधदुगे ।
दिवसपुधत्तं वासा संखसहस्सा णि घादितिये ॥ ५६३ ॥
लोभस्य प्रथमचरिमे लोभस्यांन्तमुहूर्तं बंधद्विके ।
दिवसपृथक्त्वं वर्षाः संख्यसहस्रा घातित्रये ।। ५६३ ॥
स० चं० - ताके अनंतरि लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिका वेदक हो है । ताका काल समस्त लोभ वेदक कालके तीसरे भागमात्र वा बादर लोभ वेदक कालतें आधा है । ताका अन्त समयविषै संज्वलन लोभका स्थितिबंध वा स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तमात्र है । तहां स्थितिबंधतें स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा जानना । बहुरि तीन घातियानिका स्थितिबंध पृथक्त्व दिनमात्र अरस्थिति सत्त्व संख्यात हजार वर्षमात्र है ।। ५६३ ।।
साणं पयडीणं वास धत्तं तु होदि ठिदिबंधो । ठिदिसत्तमसंखेज्जा वस्त्राणि हवंति नियमेणं ॥ ५६४ ॥
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शेषाणां प्रकृतीनां वर्षपृथक्त्वं तु भवति स्थितिबंधः । स्थितिसत्त्वमसंख्येया वर्षा भवंति नियमेन ॥ ५६४ ॥
स० चं० – अवशेष तीन अघातिया प्रकृतिनिका स्थितिबंध पृथक्त्व वर्षमात्र अर स्थिति - सत्त्व यथायोग्य असंख्यात वर्षमात्र है नियमकरि ।। ५६४ ॥
से काले लोहस् य विदियादो संगहादु पढमठिंदी |
सुमं किट्टि करेदि तव्विदियत दियादी' ।। ५६५ ।।
स्वे काले लोभस्य च द्वितीयतः संग्रहात् प्रथमस्थितिः । तत्र सूक्ष्मां कृष्टि करोति तद्वितीयतृतीयतः ॥ ५६५॥
स० चं - बहुरि ताके अनन्तरि अपने कालविषै लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिके द्रव्यतै प्रदेश समूहका अपकर्षणकरि उदयादि गलितावशेष गुणश्रेणीरूप प्रथम स्थिति करं है ताका प्रमाण
१. ་་............་ताधे लोभसंजलणस्स द्विदिबंधो अंतोमुहुत्तं । ट्ठिदिसंतकम्मं पि अंतोमुहुत्त | तिन्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो दिवसपुधत्तं । घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । क० चु०, पृ० ८६१-८६२ ।
२. सेसाणं कम्माणं वासपुधत्तं । सेसाणं कम्माणं असंखेज्जाणि वस्साणि । क० चु०, पृ० ८६१ - ८६२ । ३. तदो से काले लोहस्स विदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकड्डियूण पढमट्ठिदि करेदि । ताधे चेव लोभस्स विदिकिट्टीदो च तदिकिट्टीदो च पदेसग्गमोकड्यूिण सुहुमसांपराइय किट्टीओ णाम करेदि । क० चु०, पृ० ८६२ ।
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