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________________ सूक्ष्म कृष्टिकरण निर्देश ४५७ अवशेष रह्या अनिवृत्तिकरण कालतें आवलीमात्र अधिक है । बहुरि तिस ही कालविषै लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टि अर तृतीय संग्रह कृष्टिका जो द्रव्य तातै प्रदेशसमूहको अपकर्षण करि सूक्ष्म है अनुभागशक्ति जिनविषै ऐसी सूक्ष्म कृष्टि करें है । सो बादर लोभकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका द्रव्य सर्व मोहका द्रव्यका चौइसका भागतं तेईसगुणा है । तातें अपकर्षण कीया द्रव्य अनुभागको अपेक्षा सर्व मोह द्रव्यका चौईसवाँ भागकों अपकर्षण भागहारका भाग दीए एक भाग तातें पांचसै पिचहत्तरगुणा हैं। तहाँ तेईसगुणा तो लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिरूप द्रव्य है । अर अवशेष पाँचसै बावनगुणा द्रव्य रह्या ताकरि सूक्ष्म कृष्टि करिए है । इहाँ अपकर्षण कीया द्रव्यविषै तेईसका गुणकार था ताकों तातैं एक अधिक चौईस ताकरि गुणें ताके अनन्तरि भोगवने योग्य सूक्ष्म कृष्टि ता विषै संक्रमण होने योग्य द्रव्य पांचसै बावनगुणा हो है । ताके अनंतरि भोगव योग्य कृष्टिविषै संक्रमण द्रव्य संख्यातगुणा कहा है । बहुरि लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टि के द्रव्य अपकर्षण कीया द्रव्य है सो सर्व मोह द्रव्यका चौईसवां भागकौं अपकर्षण भागहारका भाग दी एक भागहारमात्र है ताकरि सूक्ष्म कृष्टि करिए है । मिलिकरि मोह द्रव्यका चौईसवां भागकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएँ तातैं पाँचसै तरेपणगुणा द्रव्य भया । सो इतने द्रव्यकरि सूक्ष्म कृष्टि करिए है ऐसा तात्पर्य जानना || ५६५॥ लोहस्स तदियसंगह किट्टीए हेट्ठदो अवट्ठाणं । हुमाणं किट्टीणं कोहस्स य पढ मकिट्टिणिभा ॥ ५६६ ॥ लोभस्य तृतीयसंग्रहकृष्ट्या अधस्तनतः अवस्थानम् । सूक्ष्मानां कृष्टीनां क्रोधस्य च प्रथमकृष्टिनिभा ॥ ५६६ ॥ स० चं० -- तिनि सूक्ष्म कृष्टिनिका लोभकी तृतीय संग्रह कृष्टिके नीच अवस्थान है । बहुरि सूक्ष्म कृष्टिक्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिके समान हो हैं । कैसे ? सो कहिए है-ते जैसैं अपूर्व स्पर्धकनिके नीचे अनंतगुणा घटता अनुभाग लीएं क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि है तैसें बादर कृष्टिके नीचे अनंतगुणा घटता अनुभाग लीएं सूक्ष्म कृष्टिनिकी रचना हो है । बहुरि जैसे क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिकी अवयव कृष्टिनिका प्रमाण या विना अवशेष बादर कृष्टिनिका जो प्रमाण तातैं संख्यातगुणा है । तैसे ही सूक्ष्म कृष्टिनिका प्रमाण क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टि विना अवशेष कृष्टिनिके प्रमाणत संख्यातगुणा है । बहुरि जैसे क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टि जघन्य कृष्टितैं लगाय उत्कृष्ट कृष्टिपर्यन्त अनन्तगुणा अनुभाग क्रम लीएं है ते ही सूक्ष्म कृष्टि भी जघन्यतें लगाय उत्कृष्ट पर्यन्त अनन्तगुणा अनुभाग लीएं है ।। ५६६ ।। कोहस्स पढमकिट्टी को छुद्धे दु माणपढमं च । माणे छुद्धे मायापढमं मायाए संछुद्धे ।। ५६७ ।। लोहस्स पढमकिट्टी आदिमसमयकदहुमकिट्टी य । अहियकमा पंचपदा सगसंखेज्जदिमभागेण ।। ५६८ ।। १. तासि सुहुमसांपराइय किट्टीणं कम्हि द्वाणं १ तासि द्वाणं लोभस्स तदियाए संगहकिट्टीए हेट्ठदो । जारिस कोहस्स पढमसंगह किट्टी तारिसी एसा सुहुमसांपराइयकिट्टी । क० चु०, पृ० ८६२ | २. कोहस्स पढमसंग किट्टीए अन्तरकिट्टीओ थोवाओ । कोहे संछुद्धे माणस्स पद्मसंग किट्टीए ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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