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________________ ४५४ क्षपणासार घाटि पचास दिन है। अर स्थितिसत्त्व अन्तमुहर्त घाटि चालीस मासमात्र है। इहां क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टिवत् त्रैराशिक आदि विधान जानना। इहांतें आगें पूर्व संग्रह कृष्टिका द्रव्य मिलनेः वेद्यमान कृष्टिका द्रव्यविर्षे एक एक गुणकार क्रमतें बंधे है। तहाँ मानकी द्वितीय तृतीय अर मायाकी प्रथम द्वितीय तृतीय अर लोभकी प्रथम द्वितीय तृतीय संग्रह कृष्टिका द्रव्य क्रमतें सतरह अठारह उगणीस वीस इकईस बाईस तेईस चौईसगुणा है सो अपने-अपने द्रव्यकों अपकर्षणकरि अपने वेदक कालतें आवली मात्र अधिक प्रथम स्थिति करिए है । तहाँ पूर्वोक्त विधान” तिस प्रथम स्थितिविर्षे समय अधिक आवली अवशेष रहैं अपनी-अपनी वेदक कालका अंत समय हो है ॥५५६॥ तहाँ स्थितिबंध स्थितिसत्त्वका विशेष कहिए है विदियस्स माणचरिमे चत्तं वत्तीसदिवसमासाणि । अंतोमहुत्तहीणा बंधो सत्तो तिसंजलणगाणं ॥५५७|| द्वितीयस्य मानचरमे चत्वारिंशद्वात्रिंशदिवसमासाः। अन्तर्मुहूर्तहीना बंधः सत्त्वं त्रिसंज्वलनानां ॥५५७॥ स० चं०-ताके अनन्तरि मानकी द्वितीय संग्रह कृष्टिका नेदक हो है। ताका अंत समयविर्षे तीन संज्वलनका स्थिति बंध अन्तमुहूर्त घाटि चालीस दिन अर स्थितिसत्व अन्तमुहूर्त घाटि वत्तीस मासमात्र है ।।५५७।। तदियस्स माणचरिमे तीसं चउवीस दिवसमासाणि । तिण्हं संजलणाणं ठिदिबंधो तह य सत्तो यः ॥५५८॥ तृतीयस्य मानचरिमे त्रिंशदचतुर्विशदिवसमासाः। त्रयाणां संज्वलनानां स्थितिबंधस्तथा च सत्त्वं च ॥५५८।। स० चं०-ताके अनन्तरि मानकी तृतीय संग्रह कृष्टिका वेदक हो है । ताका अन्त समयविर्षे तीन संज्वलनिका स्थितिबन्ध अन्तमुहूर्त घाटि तीस दिन अर स्थितिसत्त्व अन्तमुहूर्त घाटि चौबीस मासमात्र हो है ॥५५८॥ पढमगमायाचरिमे पणवीसं वीसदिवसमासाणि । अंतोमुहुत्तहीणा बंधो सत्तो दुसंजलणगाणं ॥५५९।। १. से काले माणस्स विदियकिट्टीयो पदेसग्गमोकड्डियूण पढमट्ठिदि करेदि । तेणेव विहिणा संपत्तो माणस्स विदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमदिदी तिस्से समयाहिवावलियसेसा त्ति ताधे संजलणाणं दिदिबंधो मासो दस च दिवसा देसूणा । संतकम्मं दो वस्साणि अट्ठ च मासा देसूणा । क० चु०, पृ० ८६० । २. ....."ताधे तिण्हं संजलणाणं ठिदिबंधो मासो पडिपुण्णो । संतकम्मं वे वस्साणि पडिपुण्णाणि । क० चु०, पृ०८६० । ३. ......"ताधे ठिदिबंधो दोण्हं संजलणाणं पणवीसं दिवसा देसणा। ठिदिसंतकम्मं वस्सम च मासा देसूणा। क० च०, पृ० ८६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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