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कृष्टियोंके लक्षणका निर्देश
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स० चं० -- तीन घातियानिका संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिसत्त्व है । बहुरि तीन अघातियानिका असंख्यात हजार वर्षमात्र इहां स्थितिसत्त्व है ||५०८ |
पदमणं गुणदा किट्टीयो फड्ढया विसेसहिया । किट्टीण फड्ढयाणं लक्खणमणुभागमासेज्जे || ५०९ ।। प्रतिपदनंतगुणिता कृष्टयः स्पर्धका विशेषाधिकाः । कृष्टीनां स्पर्धकानां लक्षणमनुभागमासाद्य ॥५०९ ॥
स० चं० – कृष्टि हैं ते तो प्रतिपद अनंतगुणा अनुभाग लीए हैं । प्रथम कृष्टिका अनुभाग द्वितीय कृष्टिका अनुभाग अनंतगुणा, तातैं तृतीय कृष्टिका, ऐसें अंत कृष्टि पर्यंत क्रमते अनंतगुणा अनुभाग पाइए है । बहुरि स्पर्धक हैं ते प्रतिपद विशेष अधिक अनुभाग लीए हैं । स्पर्धकनिकी प्रथम वर्गणा द्वितीय वर्गणाविषै तातै तृतीय वर्गणाविषै ऐसे अनंत वर्गणापर्यंत क्रमतें किछु विशेष अधिक अनुभाग पाइए है । ऐसें अनुभागकों आश्रय करि कृष्टि अर स्पर्धकनिका लक्षण है । द्रव्य अपेक्षा तौ चय घटता क्रम दोऊनिविषै ही है परंतु अनुभागका क्रमकी अपेक्षा इनका लक्षण जुदा जानि जुदापना कहा हैं ||५०९ ||
पुव्वापुव्व फड्डयमणुहवदि हु किट्टिकारओ णियमा । तस्सद्धा णिङ्कायदि पढमट्ठिदि आवलीसेसे || ५१० ॥ पूर्वापूर्वस्पर्धकमनुभवति हि कृष्टिकारको नियमात् । तस्याद्धा निष्ठापयति प्रथमस्थितौ आवलिशेषे ॥ ५१० ॥
स० चं० - कृष्टि करनेवाला तिस कालविषं पूर्व अपूर्व स्पर्धकनिहीके उदयक नियम करि भोगवे है। जैसैं अपूर्वं स्पर्धक करने पूर्वं स्पर्धक सहित अपूर्व स्पर्धक भोगवै है तैसें कृष्टि करतें कृष्ट नाहीं भोग है ऐसा जानना । या प्रकार संज्वलन क्रोधका प्रथम स्थितिविषै उच्छिष्टावलिमात्र काल अवशेष रहें तिस कृष्टिकरण कालकौं निष्ठापन करे समाप्त करे है । इति कृष्टिकरणाधिकारः ॥५१०॥
अथ कृष्टि वेदनाधिकार कहिए हैं
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सेका कट्टीओ अणुवदि हु चारिमासमडवस्सं । बंधो संतं मोहे पुब्वालावं तु सेसा ॥५११ ॥
१. गुणसेढि अनंतगुणा लोभादी कोधपच्छिमपदादी । कम्मस्स य अणुभागे किट्टीए लक्खणं एदं । -- १६५ ग० क०, पृ० ८०७ । किसं कम्मं कदं जम्हा तम्हा किट्टी । क० चु०, पृ० ८०७-८०८ । २. किट्टीओ को पुव्वफद्दयाणि अपुव्वफद्दयाणि च वेदेदि, किट्टीओ ण वेदयदि ।
क० चु०, पृ० ८०४ ।
३. से काले किट्टीओ पवेसदि । ता संजलणाणं टिट्ठदिबंधो चत्तारि मासा । ट्ठिदिसंतकम्मम वाणि । तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो द्विदिसंतकम्मं च संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । वेदणीय
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