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________________ क्षपणासार है। तहाँ एक एक मध्यम खंडकौं दीए तिनका समान प्रमाण ही रया। बहुरि उभय द्रव्य विशेष क्रमतें एक-एक विशेष घटता दीया सो यह विशेष विवक्षित कृष्टिकी नीचली कृष्टिका द्रव्य के अनंतवे भागमात्र हैं। तात दृश्यमान द्रव्यकी अपेक्षा सर्वत्र अनंतवां भागमात्र घटता क्रम कह्या है । बहुरि अंत कृष्टिनै अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणा विर्षे दीया द्रव्य अनंतगुणा घटता है जातें तहां एक भागविर्षे द्वयर्ध गुणहानिका भाग दीएं ताका प्रमाण हो है ॥५०५।। किट्टीकरणद्धाए चरिमे अंतोमुत्तसंजुत्तो। चत्तारि होति मासा संजलणाणं तु ठिदिबंधो ||५०६॥ कृष्टिकरणद्धायाः चरमे अंतर्मुहुर्तसंयुक्ताः । चत्वारो भवंति मासाः संज्वलनानां तु स्थितिबंधः ॥५०६॥ सं० चं०--कृष्टि करणकाल अंतमुहूर्तमात्र है ताका अंत समयविर्षे अंतमुहूर्त अधिक च्यारि मासप्रमाण संज्वलन चतुष्कका स्थितिबंध है। अपूर्व स्पर्धक करणकालका अंत समयविर्षे आठ वर्षमात्र था सो एक-एक स्थितिबंधापसरणविर्षे अंतमुहूर्तमात्र घटि इहां इतना रहै है ।।५।६।। सेसाणं वस्साणं संखेज्जसहस्सगाणि ठिदिबंधो । मोहस्स य ठिदिसंतं अडवस्संतोमुत्तहियं ॥५०७॥ शेषाणां वर्षाणां संख्येयसहस्रकानि स्थितिबंधः । मोहस्य च स्थितिसत्त्वं अष्टवर्षोऽन्तर्मुहूर्ताधिकः ॥५०७॥ स० चं०-बहुरि अवशेष कर्मनिका स्थितिवध संख्यात हजार वर्षमात्र है। पूर्व भी संख्यात हजार वर्षमात्र ही था सो संख्यातगुणा घटता क्रमरूप संख्यात हजार स्थितिबंधापसरण भएं भी आलापकरि इतना ही कह्या। बहुरि मोहनीयका स्थितिसत्त्व पूर्व संख्यात हजार वर्षमात्र था सो घटिकरि इहां अंतमुहूर्त अधिक आठ वर्षमात्र रया है ॥५०७।। घादितियाणं संखं वस्ससहस्साणि होदि ठिदिसंतं । वस्साणमसंखेज्जसहस्साणि अघादितिण्ण तु ।।५०८।। घातित्रयाणां संख्यं वर्षसहस्राणि भवति स्थितिसत्त्वम् । वर्षाणामसंख्येयसहस्राणि अघातित्रयाणां तु ॥५०८॥ १. किट्टीकरणद्धाए चरिमसमए संजलणाणं ट्ठिदिबंधो चत्तारिमासा अंतोमुत्तब्भिहिया । क० चु० पृ० ८०३ । २. सेसाणं कम्माणं दिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । तम्हि चेव किटीकरणद्धाए चरिमसमए मोहणीयस्स ट्रिदिसंतकम्म संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि हाइदण अदुवस्सगमंतोमहत्तब्भहियं जादं । -क० चु०, पृ० ८०३-८०४ । ३. तिण्हं घादिकम्माण ठिदिसंतकम्म संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । णामा-गोद-वेदणीयाणं द्विदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । -क० चु०, पृ० ८०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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