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________________ [ ३३ ] यहाँ गा० ३४ संख्यानगुणमें संख्यातका संकेत स्वीकार किया गया है और गा० ४१ में संख्यात गुणहीन बतलाने के लिए संख्यातका संकेत-४ स्वीकार किया गया है । तथा गाथा ४२में प्रतिहारके रूपमें स्वीकृत अन्तर्मुहूर्त के प्रमाणका संकेत २ ११११२ स्वीकार किया गया है। इस प्रकार अन्तमहतका प्रमाण तीन रूपमें स्वीकार किया गया है। आगे भी इसी प्रकार यथा सम्भव जानना चाहिए । गाथा ५६ अपवर्तित द्रव्य निरक्षेप रचना सर्वत्र कर्मस्थिति-क० गाथा ७० समयप्र बद स०, साधिक बारहका संकेत १२-, सात कर्मोका संकेत ७, अनन्तका संकेत ख, मोहनीयकी सत्रह प्रकृतियोंका संकेत १७, अपकर्षणका संकेत ओ; पत्योयमका संकेत प० । गाथा ७१-७२ आवलिका संकेत ८, द्विगुणहानिका संकेत १६ रूपोंनेका संकेत १ = गाथा ७७ सागरोपमपृथत्वव-सा० ८.। गाथा ८४ अन्तर्मुहूर्त २१ का संख्यात बहुभाग २२६, एक भाग २१६, इसमें बहुभागका संकेत एक भागका संकेत ६। गाथा ८५ यहाँ अ अन्तरकरणके कालका संकेत २२३ ४।४ यहाँ शीर्षसे संख्यातगुणेके संकेत २२३ में संख्यातगुणे का संकेत ३ अर्थसंदृष्टिके ये कतिपय संकेत है । स्वयं वृत्तिकारने अपने संकेतोंका कोई विवरण नहीं दिया है । संकेतोंमें कहीं-कहीं विविधता भी गृष्टिगोचर होती है । उदाहरणार्थ अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयके परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण हैं । असंख्यात लोकका संकेत चिह्न = a है। उसमें प्रथम समयके परिणामोंका संकेत उन्होंने यह रखा है-- नी, इन्हें विशेषाधिक करनेके लिए १ १ के २१२२२२२२२२ स्थानमें ३ सा करके पहले १ के स्थानमें ३ अंक कर दिया है। तथा अन्तिम समयके १० परिणामोंका संकेत =२१११२ इस प्रकार दिया है। यहाँ प्रथम समयके परिणाम असंख्यात २२११२१२२१२ लोकप्रमाण होते हुए भी और असंख्यात लोकका संकेत a = होते हुए भी इन परिणामोंकी कल्पना उक्त प्रकारके संकेतके रूपमें की गई है । अस्तु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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