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________________ ३९६ क्षपणासार प्रथमानुभागखंडे पतिते अनुभाग सत्त्वकर्म तु । लोभादनंतगुणितमुपर्यपि अनंतगुणितक्रमं || ४८१ ।। स० चं० - ऐसें प्रथम अनुभागखण्डका पतन होतें लोभतें अनंतगुणा क्रम लीए अनुभाग सत्त्वरूप कर्म हो है । तहाँ लोभका स्तोक, तातैं मायाका अनंतगुणा, तातै मानका अनंतगुणा, तातै stant अनंतगुणा अनुभाग सत्त्व हो है ऐसा जानना, जाते तहां अश्वकर्ण क्रियाकरि प्रथम अनुभाग कांडकका घात भए पीछें अवशेष अनुभाग सत्त्व हो हैं । वहुरि यातें उपरिवर्ती अश्वकर्ण कालके सर्वं समयनिकेविषै भी ऐसे ही अल्पबहुत्वका क्रम लीए अनुभाग सत्त्व जानना || ४८१ ॥ आदोलस य पढमे वित्तिदअपुव्वफड्डयाणि बहू । पडिसमयं पलिदोवममूलासंखेज्जभागभजियकमा १ || ४८२।। आंदोलस्य च प्रथमे निर्वर्तितापूर्वस्पर्धकानि बहूनि । प्रतिसमयं पलिदोपममूलासंख्ये भागभजितक्रमं ॥। ४८२ ॥ स० चं० - आंदोल कहिए अश्वकर्ण ताका प्रथम समयविषे जे अपूर्व स्पर्धक की ते बहुत है । पीछे समय-समय प्रति पल्यके वर्गमूलका असंख्यातवां भागकरि भाजित क्रम लीए जानने । प्रथम समयवि की अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाणकौं पल्यके वर्गमूलका असंख्यातवां भागका भाग दीए द्वितीय समयविषै नवीन कीए अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण हो है । याकौं पल्य वर्गमूलका असंख्यातवां भागका भाग दीए तृतीय समयविषे कीए नवीन अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण हो है । ऐसे ही अपूर्व स्पर्धककरण कालका अंत समय पर्यंत क्रम जानना ||४८२॥ Jain Education International आदोलस य चरिमे अपुव्वादिमवग्गणाविभागादो । दो चढिमादीणादी चढिदव्या मेत्तणंतगुणा ||४८३॥ आंदोलस्य च चरमेऽपूर्वादिमवर्गणाविभागात् । द्विचटितादीनामादिः चटितव्या मात्रानंतगुणा ||४८३ ॥ स० चं० - ऐसें क्रमतें अपूर्व स्पर्धक होतें अपूर्व स्पर्धक सहित अश्वकर्ण कालका अंत समयविष सर्व अपूर्व स्पर्धक भए । तहां प्रथम समय स्पर्धककी आदि वर्गणाविषै अनुभाग के अविभागप्रतिच्छेद स्तोक हैं । तातें दूसरे स्पर्धककी आदि वर्गणाविषे दूणे, तीसरे स्पर्धककी आदि वर्गणाविष तिगुणे ऐसें जेथवां स्पर्धक होइ तिसकी आदि वर्गणाविषे तितनेगुणे होंइ सो अनंतगुणा पर्यंत चढना । अंत स्पर्धक की आदि वर्गणाविषै अनंतगुणे हो हैं ऐसा जानना । इहां विवक्षित वर्गणाकी 1 भागसंतकम्ममणंतगुणं । माणस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । कोहस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । १. क० चु० पृ० ७९६ । २. चरिमसमए लोभस्स अपुव्वफयाणमादिवग्गणाए अविभागपलिच्छेदग्गं थोवं । विदियस्स अवफस्स आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदग्गं दुगुणं । तदियस्स अपुव्वफद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागपरिच्छेदग्ग तिगुणं । एवं मायाए माणस्स कोहस्स च । क० चु० पृ० ७९६ । - क० चु० पृ० ७२५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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