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________________ अश्वकर्णकरणके द्वितीयादिसमयसम्बन्धी प्ररूपणा ३९७ एक-एक परमाणुविषै पाइए हैं जे अविभागप्रतिच्छेद तिनिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहया है । सर्व परमाणू अपेक्षा किंचित् ऊन दूणा तिगुणा क्रम जानना । ऐसें पूर्व ही यतिवृषभ आचार्यकरि प्रतिपादन कीया है । च्यारथो कषायनिविषै ऐसें ही क्रम जानना ||४८३|| आदोलस य पढमे रसखंडे पाडदे अव्वादो | कोहादी अहियकमा पदेसगुणहाणिफड्ढया तत्तो ॥ ४८४ ॥ होदि असंखेज्जगुणं इगिफड्ढयवग्गणा अनंतगुणा । तत्तो अनंतगुणिदा कोहस्स अपुव्वफड्ढयाणं च ॥ ४८५ ॥ माणादीयिकमा लोभगपुव्वं च वग्गणा तेसिं । कोहो त्ति य अड्ड पदा अनंतगुणिदक्कमा होति ॥ ४८६॥ Jain Education International आदोलस्य च प्रथमे रसखंडे पातिते अपूर्वात् । क्रोधात् अधिकक्रमाः प्रदेशगुणहानिस्णर्धकास्ततः ॥ ४८४ ॥ भवति असंख्यगुणं एक्स्पर्धकवर्गणा अनंतगुणा । ततः अनंतगुणितं क्रोधस्य अपूर्वस्पर्धकानां च ॥४८५॥ मानादीनामधिकक्रमं लोभगपूर्वं च वर्गणा तेषां । क्रोध इति च अष्ट पदानि अनंतगुणितक्रमाणि भवंति ॥ ४८६ ॥ स० चं०-- अश्वकर्णका प्रथम समय अनुभागकांडकका घात होत संतै भए ऐसे क्रोधके अपूर्व स्पर्धक स्तोक है । तातैं मानके अपूर्वं स्पर्धक विशेष अधिक हैं । तातैं मायाके अपूर्व स्पर्धक विशेष अधिक हैं । तातें लोभके अपूर्व स्पर्धक विशेष अधिक हैं । बहुरि तातै प्रदेशसम्बन्धी एक गुणहानिवि स्पर्धकनिका प्रमाण असंख्यातगुणा है, जातैं याकों असंख्यातका भाग दीएं अपूर्वस्पर्धकनिका प्रमाण आवै है । तातै अपूर्वस्पर्धकनिका प्रमाणको असंख्यात करि गुण याका प्रमाण या कहा । बहुरि तातें एक स्पर्धकविषै पाइए जे वर्गणा तिनका प्रमाण अनंतगुणा है, जातें पूर्व वा अपूर्व स्पर्धकविषं वर्गणा अभव्य राशितें अनन्तगुणी वा सिद्धराशिके अनन्तवें भागमात्र पाइए है । तातैं अनन्तका गुणकार संभव है । बहुरि तिनतें क्रोध के सर्वं अपूर्वं स्पर्धकनिकी वर्गणाका प्रमाण अनन्तगुणा है, जाते एक स्पर्धककी वर्गणाका प्रमाण कहया ताक क्रोध अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण प्रदेशसम्बन्धी गुणहानिविषै स्पर्धकनिके प्रमाणके असंख्यातवां भागमात्र प्रमाणकरि गुणें यहु हो है । बहुरि तात मानके सर्व अपूर्व स्पर्धकनिकी वर्गणा विशेष अधिक हैं । तिनतैं मायाके सर्व अपूर्व स्पर्धकनिकी वर्गणा विशेष अधिक है । तातें लोभके सर्व अपूर्व स्पर्धकनिकी वर्गणा विशेष अधिक है । इहां इनके अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण विशेष अधिक क्रम लीएं है । तातैं तिनकी वर्गणानिका प्रमाण भी विशेष अधिक क्रम लीएं कहया । बहुरि लोभके अपूर्व स्पर्धकनिकी वर्गणानिका प्रमाणतें लोभके पूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण अनन्तगुणा है, जातै लोभके अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण प्रदेशगुणहानिकी स्पर्धकशलाकाके असंख्यातवें भागमात्र, ताक एक स्पर्धककी वर्गणाका प्रमाणकरि गुण लोभके अपूर्व स्पर्धकनिकी वर्गणानिका प्रमाण हो 1 १. क० चु० पू० ७९६ - ७९७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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