SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 473
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९४ क्षपणासार स्पर्धक उत्तरोत्तर असंख्यातगुणें हीन होते हैं ऐसा यहाँ समझना चाहिये। किन्तु उत्तरोत्तर जो नूतन अपूर्व स्पर्धक किये जाते हैं उनमें गुणश्रेणि रचनाको देखते हुए निक्षिप्त होनेवाला द्रव्य उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा होता है यह स्पष्ट ही है । पढमादिसु दिज्जकमं तक्कालजफड्ढयाण चरिमो त्ति । हीणकम से काले असंखगुणहीणयं तु हीणकमं ॥४७९।। प्रथमादिषु देयक्रमं तत्कालजस्पर्धकानां चरम इति । हीनक्रमं स्वे काले असंख्यगुणहीनकं तु हीनक्रमम् ॥४७२॥ स० चं०-अपकर्षण कीया द्रव्यकौं जैसैं दीया तैसैं जो अनुक्रम सो देय क्रम कहिए सो ऐसे हैं अपूर्व स्पर्धककरण कालका प्रथमादि समयनिविर्षे तिस काल कीए स्पर्धकनिका अंतपर्यंत तौ विशेष हीन क्रम लीएं अर ताके अनंतरि असंख्यातगुणा घटता ताके ऊपरि विशेष हीन क्रम लीएं जानना । सो कहिए है प्रथम समयवि अपकर्षण कीया द्रव्य तिसवि. तिस समय कीए अपूर्व स्पर्धक तिनकी प्रथम वर्गणाविर्षे बहुत द्रव्य दीजिए है। तातै तिनकी द्वितीय वर्गणा आदि अंतवर्गणा पर्यंत चय घटता क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है। बहुरि अपूर्व स्पर्धककी अंत वर्गणाविषै दीया द्रव्यतै पूर्व स्पर्धकनिकी प्रथम वर्गणाविषै असंख्यातगुणा घटता द्रव्य दीजिए है। तातै ताके ऊपरि तिनकी अंत वर्गणा पर्यंत चय घटता क्रमकरि दीजिये है। बहुरि द्वितीय समयविर्षे अपकर्षण कीया द्रव्य तिसविर्षे तिस समय कीए नवीन अपूर्व स्पर्धक तिनकी प्रथम वर्गणा विर्षे बहुत द्रव्य अर द्वितीयादि अंत वर्गणा पर्यंत चय घटता क्रमकरि द्रव्य दीजिए है। बहुरि तिसकी अंत वर्गणाके द्रव्यतै प्रथम समयविर्षे कीए अपूर्व स्पर्धकनिकी प्रथम वर्गणाविर्षे असंख्यातगणा घटता द्रव्य दीजिए है। ता ताके ऊपरि तिनकी अंत वर्गणा पर्यंत वा ताके ऊपरि पूर्व स्पर्धकनिकी प्रथमादि अंत वर्गणा पर्यंत चय घटता क्रमकरि दीजिए है। बहुरि तृतीय समयविर्षे नवीन बने अपूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषै बहुत द्रव्य, के उपरि तिनकी अंत वर्गणा पर्यंत चय घटता क्रम लीएं द्रव्य दीजिए है । ताके ऊपरि द्वितीय समयविर्षे कीए अपूर्व स्पर्धकनिकी प्रथम वर्गणाविर्षे असंख्यातगुणा घटता द्रव्य दीजिए है। ताके उपरि तिनकी अंत वर्गणा पर्यंत वा प्रथम समयवि कीए अपूर्व स्पर्धाककी प्रथमादि अंत वर्गणा पर्यंत वा पूर्ण स्पर्धकनिकी प्रथमादि अंत वर्गणा पर्यंत चय घटता क्रम लीएं १. पढमसमए णिव्वत्तिज्जमाणगेसु पुव्वफद्दयहिंतो ओकड्डियूण पदेसग्गमपुव्वफद्दयाणमादिवग्गणाए बहअं देदि । विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं देदि । एवमणंतराणंतरेण गंतुण चरिमाए अपुव्वफद्दयवग्गणाए विसेसहीणं देदि । तदो चरिमादो अपुव्वफद्दयवग्गणादो पढमस्स पुव्वफद्दयस्स आदिवग्गणाए असंखेज्जगुणहीणं देदि । तदी विदियफद्दयवग्गणाए विसेसहीणं देदि । सेसासु सव्वासु पुव्वफद्दयवग्गणासु विसेसहीणं देदि । -क० चु० पृ० ७९२-७९३ । विदियसमए अपुव्वफयाणमादिवग्गणाए पदेसग्गं बहुअं देदि । विदियसमए विसेसहीणं । एवमणंतरोपणिधाए विसेसहीणं दिज्जदि । ताव जाव जाणि विदियसमए अपुव्वाणि अपुब्बफदयाणि कदाणि । तदो चरिमादो वरणादो पढमसमए जाणि अपुव्वफद्दयाणि कदाणि तेसिमादिवग्गणाए दिज्जदि पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं ।...""आदि-क० चु० पृ० ७९४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy