SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अश्वकर्णकरणविधिका निर्देश ३७३ हैं । तातैं मानके विशेष अधिक हैं । तातैं मायाके विशेष अधिक हैं । तातै लोभके विशेष अधिक है । इहां पहले जे अनुभाग कांडक भए तिनविषै अनुभागसत्त्वके अनुसारि मानके स्तोक, तातै क्रोध माया लोभके क्रमतें विशेष अधिक स्पर्धक ग्रहण होते थे । अब परिणामनिके विशेषतं विशेष घात पाइ अपने-अपने अनुभागसत्त्वक अनंतका भाग दीएं तहाँ बहुभागमात्र अब कीया इस कांडक - करि गृहीत जो अनुभाग है सो क्रोधका स्तोक तातै मान माया लोभके क्रमतें विशेष अधिक हो हैं | अंक संदृष्टिरि इस कांडककरि ग्रहे क्रोधके तीनसै सित्यासी, मानके च्यारिसे असी, मायाके पाँचसै दश, लोभके पाँचसै उगणीस, स्पर्धक जानने-क्रोध माया लोभ । मान ४८० ३८७ ५१० ५१९ बहुरि प्रथम अनुभाग कांडकका घात भए पीछें अवशेष स्पर्धक रहे ते लोभके स्तोक, तातैं मायाके अनन्तगुणे, तातैं मानके अनन्तगुणे तातें क्रोधके अनन्तगुणे जानने । अंकसंदृष्टि करि जैसे प्रथम कांडकका घात भए पीछे विशेष रहे स्पर्धक ते लोभके दोय, तातै माया मान क्रोधके क्रमतें चौगुणे चौगुणे जानना । क्रोध १२८ मान माया ३२ ८ लोभ २ इहां आशंका - जो कांडकबिषै विशेष अधिकपना कह्या तौ अवशेष अनुभागविषै अनन्तगुणाना कैसे संभव ? ताका समाधान - अंक संदृष्टि अपेक्षा कहिए है। मानका अनुभागसत्त्व पाँच से बारह, तातें क्रोधका तीन अधिक, मायाका छह अधिक, लोभका नव अधिक है । तहाँ अधिक प्रमाणक जुदे राखि पाँचसै बारहकों अनन्तकी संदृष्टि च्यारि ताका भाग देइ तहां एक भाग विना बहुभाग ५१२ तीनसै चौरासी, तामैं क्रोधविषै तीन अधिक कहे थे ते मिलाएं क्रोध ४ ४ कांडक विषै तीनसै सित्यासी स्पर्धकनिका प्रमाण हो है, बहुरि अवशेष एक भागमात्र ५१२ एकसौ अठाईस स्पर्धकप्रमाण क्रोधका अवशेष अनुभागसत्त्व हो है । बहुरि इस अवशेष एक भागकौं च्यारिका भाग देइ तहां बहुभाग ५१२ । ३ छिनवै तिनकों पहले बहुभाग तोनसै चौरासी कहे थे तिनमें जोड़ें मानकांडकका प्रमाण ४ । ४ च्यारिसै असी ४८० हो है । अवशेष एक भाग Jain Education International स्पर्धक प्रमाण मान का अवशेष अनुभागसत्त्व हो है । बहुरि यहु अवशेष एक भाग रह्या ताक च्यारिका भाग देइ तहाँ बहुभाग ५१२ । ३ चोईस तिनको पूर्वं मानकांडक च्यारिसै असी ४ । ४ । ४ कया था तामैं जोड़ें अर मायाका अधिक प्रमाण छह तिनकौं अधिक कीएँ माया कांडकका प्रमाण पाँच दश ५१० हो है । अवशेष एक भागमात्र ५१२ आठ स्पर्धकप्रमाण मायाका अवशेष ५१२ मात्र ४ |४ ४ । ४ । ४ सत्त्व हो है। बहुरि इस अवशेष एक भागकौं च्यारिका भाग देइ तहाँ बहुभाग - ५१२ । ३ ४ । ४ । ४ । ४ तिनक अधिक प्रमाण रहित जो मायाकांडक पाँचसै च्यारि तामैं जोडि इहाँ लोभका अधिक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy