________________
[३०]
लब्धिसारवृत्ति और उसके कर्ता
वर्तमान समय में लब्धिसारपर चारित्र मोह उपशमना अधिकार तक ही एक वृत्ति पाई जाती है । वृत्तिका प्रारम्भ करते हुए ये दो अनुष्टुप् छन्द उपलब्ध होते हैंजयन्त्वन्वहमर्हन्तः सिद्धाः सूर्युपदेशकाः । साधवो भव्यलोकस्य शरणोत्तममंगलम् ||१|| श्रीनागार्यतन जातशान्तिनाथोपरोधतः । वृत्तिर्भव्यप्रबोधाय लब्धिसारस्य कथ्यते ॥२॥
प्रथम छन्द में पञ्च परमेष्ठीका जय-जयकार कर भव्य जीवोंके लिए वे शरणभून, उत्तम और मंगलस्वरूप हैं यह सूचित किया गया है। तथा दूसरे छन्दमें श्रीनागार्य के सुपुत्र शान्तिनाथको प्रेरणासे भव्य जीवोंको सम्यग्ज्ञानकी प्राप्तिके निमित्त लब्धिासारग्रन्थको वृत्तिके निर्माणको प्रतिज्ञा की गई है ।
इन दोनों छन्दोंके बाद जो उत्थानिका दी गई है उससे ऐसा भी प्रतीत होता है कि लब्धिसारकी रचना सम्यकत्व चूड़ामणि चामुण्डराय के प्रश्न के अनुसार हुई है ।
इन दोनों छन्दोंमेंसे अन्तिस छन्द और उत्थानिका ऐसी है जिनसे लब्धिसारवृत्तिके निर्माण पर अंशत: प्रकाश पड़ता है । किन्तु इस वृत्तिका रचयिता कौन है यह स्पष्ट नहीं होता । गोम्मटसार कर्म - काण्ड के अन्त में जो प्रशस्ति उपलब्ध होनी है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि मूलसंघ कुन्दकुन्दाम्नायी सूरत पट्टके' भट्टारक श्री ज्ञानभूषणके शिष्य और उनके उत्तराधिकारी भट्टारक प्रभाचन्द्र के द्वारा दिये गये सूरि या आचार्य पदसे अलंकृत श्री नेमिचन्द्रने कर्णाटकीय वृत्तिके अनुसार मात्र गोम्मटसार जीवकाण्ड कर्मकाण्ड की वृत्तिकी ही रचना की थी और उसका नाम तत्वप्रदीपिका रखा था । श्री केशववर्णीने जिस कर्णाटक वृत्तिकी रचना की है वह भी गोम्मटसार जीवकाण्ड - कर्मकाण्ड तक ही सीमित है । दोनों वृत्तियोंके अन्तरंग की परीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो जाता है
१. गोम्मटसार जीवकाण्ड और कर्मकाण्डके प्रत्येक अधिकारके अन्त में इस प्रकारका पुष्पिका वाक्य उपलब्ध होता है
इत्याचार्य श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तिविरचितायां गोम्मटसारापरनामपंचसंग्रहवृत्ती तत्त्वदीपिका
**** **** **** ****
ख्यायां....
जब कि लब्धिसारके प्रत्येक अधिकारके अन्त में इस प्रकार अधिकारको समाप्ति सूचक पुष्पिका वाक्य उपलब्ध होते हैं
इति क्षायिकसम्यक्त्व प्ररूपणं समाप्तम् । इति देशसंयमलब्धिविधानाधिकारः । आदि ।
1
२. उक्त उदाहरणोंसे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि तत्वदीपिका यह नाम केवल जीवकाण्डकर्मकाण्ड वृत्तिका है, लब्धिसारवृत्तिका नहीं । लब्धिसार वृत्ति में कुछ ऐसे उद्धरण भी उपलब्ध होते है जिनसे ऐसा प्रतीत होता हैं कि लब्धिसार वृत्तिकी रचना करते समय वृत्तिकारके सामने तत्सम्बन्धी टिप्पण रहे हैं। एक दूसरे स्थल पर वृत्तिकार यह भी संकेत करते हैं कि दर्शनमोहक्षपणाके अवसरपर सम्भव ३३ अल्पबहुत्वपदोंका प्रवचनके अनुसार व्याख्यान किया ।
१२. भट्टारक सम्प्रदाय पू० २०१२ प्रशस्ति गो० कर्मकाण्ड |
३. एवं दर्शनमोहक्षपण टिप्पणम् ।
४. एवं दर्शनमोहक्षपणावसरे सम्भवदल्पबहुत्वपदानि त्रयस्त्रिंशत्संख्यानि प्रवचननुसारेण व्याख्यातानि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org