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________________ अनिवृत्तिकरणमें क्रियाविशेषका निर्देश ३४५ पल्यस्य संख्यभागं अवरं तु वरं तु संख्यभागमधिकम् । घातादिमस्थितिखंडः शेषाः सर्वस्य सदृशा हि ॥४१३॥ स० चं०-सो प्रथम स्थितिखंड जघन्य तो पल्यका संख्यातवां भागमात्र है। उत्कृष्ट ताका संख्यातवां भाग करि अधिक है । बहुरि द्वितीयादि स्थितिखंड सर्व जीवनिकै समान हो हैं । इहां कारण कहिए है कोई जीवकै स्थितिसत्त्व स्तोक है। कोईकै तातें संख्यातवां भाग करि अधिक है. तातें स्थितिसत्त्वके अनुसारि स्थितिकांडक भी कोईकै जघन्य कोईकै उत्कृष्ट हो है सो अपूर्वकरणका प्रथम समयतै लगाय अनिवृत्तिकरणविषै यावत् प्रथम खंडका घात न होइ तावत् ऐसे ही संभवै है । बहुरि तिस प्रथम कांडकका घात भएपीछे समान समयनिविर्षे प्राप्त सर्व जीवनिकै स्थितिसत्त्वकी समानता हो है, तातै द्वितीयादि स्थितिकांडक आयामनिकी भी समानता जाननी ।।४१३॥ उदधिसहस्सपुधत्तं लक्खपुधत्तं तु बंध संतो य । अणियट्टिस्सादीए गुणसेढीपुव्वपरिसेसा ।।४१४॥ उदधिसहस्रपृथक्त्वं लक्षपृथक्त्वं तु बंधः सत्त्वं च । अनिवृत्तेरादौ गुणश्रेणी पूर्णपरिशेषा ॥४१४॥ स० चं०-अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे पूर्व स्थितिबंध अन्तःकोटाकोटि सागरप्रमाण था सो अपूर्वकरण विर्षे भए संख्यात हजार स्थितिबंधापसरण तिनकरि घटता होइ पृथक्त्व हजार सागरप्रमाण स्थितिबंध भया। बहुरि पूर्व स्थितिसत्त्व अन्तःकोटाकोटि सागरप्रमाण था सो अपूर्वकरण विषै भए संख्यात हजार स्थितिकांडकघात तिनकरि घटता होइ पृथक्त्व लक्षसागरप्रमाण स्थितिसत्व भया। बहुरि गुणश्रेणि आयाम इहां अपूर्वकरण काल व्यतीत भए पीछे जो अवशेष रह्या सो इहां जानना। समय समय प्रति असंख्यातगुणा क्रम लीएं पूर्ववत् गुणश्रेणी अर गुणसंक्रम वर्ते है ।।४१४॥ आगे स्थितिबंधापसरणका क्रम कहिए है ठिदिबंधसहस्सगदे संखेज्जा बादरे गदा भागा । तत्थासण्णिस्स हिदिसरिसं ठिदिबंधणं होदि ॥४१५।। स्थितिबंधसहस्रगते संख्येया बादरे गता भागाः । तत्रासंजिनः स्थितिसदृशं स्थितिबंधनं भवति ॥४१५॥ स० चं०-ऐसैं प्रथम समय विर्षे कह्या अनुक्रम लीए एक स्थितिबंधापसरण करि स्थिति १. ट्ठिदिबंधो सागरोवमसहस्सपुधत्तमंतो सद्सहस्सस्स । टिदिसंतकम्म सागरोवमसदसहस्सपुधत्तनंतो कोडीए । गुणसेढिणिक्खेवो जो अपुवकरणे णिवखेवो तस्स सेसे सेसे च भवदि । क० चु० पृ० ७४३-७४४ २. एवं संखेज्जेसु दिदिबंधसहस्सेसु गदेसु तदो अण्णो ढिदिबंधो असण्णिट्ठिदिबंधसमगो जादो । क० चु० पृ० ७४४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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