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________________ ३४४ क्षपणासार नाश करनेवाला सार्थक नामका धारक अपूर्वकरण जानना। याकौं समाप्त होतै ताके अनंतर समय निज कालविर्षे बादर कहिए अनिवृत्तिकरण हो है ॥४१०॥ ताका व्याख्यान करिए है अणियट्टिस्स य पढमे अण्णं ठिदिखंडपहुदिमारभई । उवसामणा णिधत्ती णिकाचणा तत्थ वोछिण्णा ॥४११॥ अनिवृत्तेश्च प्रथमे अन्य स्थितिखंडप्रभृतिमारभते । उपशामना निधत्तिः निकाचना तत्र व्युच्छिन्ना ॥४११॥ स० चं०-अनिवृत्तिकरणका प्रथम समधविषै और ही स्थितिखंडादिक प्रारंभिए है। तहां अपूर्वकरणका अन्त समयवर्तीतै अन्य ही पल्यका संख्यातवां भागमात्र तो स्थितिकांडकायाम हो है। अर यातै पीछे अवशेष रहया जो अनुभाग ताका अनंत बहभागमात्र और ही अनभागकांडक हो है । अर अपूर्वकरणका अन्त समयसंबंधी स्थितिबंधतै पल्यका संख्यातवां भागमात्र घटता और ही स्थितिबंध इहां हो है। बहुरि इहां ही अप्रशस्तोपशम १ निधत्ति १ निकाचना १ इन तीन करणनिकी व्युच्छित्ति भई । अब सर्व ही कर्म उदय संक्रमण उत्कर्षण अपकर्षण करनेकौं योग्य भए ।।४११॥ बादरपढमे पढमं ठिदिखंडं विसरिसं तु विदियादि । ठिदिखंडयं समाणं सव्वस्स समाणकालम्हि ।।४१२।। बादरप्रथमे प्रथमं स्थितिखंडं विसदृशं तु द्वितीयादि । स्थितिखंडकं समानं सर्वस्य समानकाले ॥४२२।। स० चं०-अनिवृत्तिकरणका प्रथम समयविषै पहला स्थितिखण्ड है सो तो विसदृश है नाना जीवनिकै समान नाही है। बहुरि द्वितीयादि स्थितिखंड हैं ते समान कालविषै सर्व जीवनिके समान है। अनिवृत्तिकरण मा जिनकौं समान काल भया तिनकै परस्पर द्वितीयादि स्थितिकांडक आयामका समान प्रमाण जानना ॥४१२।। पल्लस्स संखभागं अवरं तु वरं तु संखभागहियं । घादादिमठिदिखंडो सेसा सव्वस्स सरिसा हु ॥४१३।। १. पढमसमयअणियट्रिस्स अण्णं ट्रिदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो। अण्णमणुभागखंडयं सेसस्स अणंता भागा। अण्णो दिदिबंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागेण हीणो । 'सव्वकम्माणं पि तिण्णि करणणि वोच्छिण्णाणि । जहा-अप्पसत्थउवसामणाकरणं णिवत्तीकरणं णिकाचणाकरणं च । क० चु० १० ७४३-७४४ । २. पढमं टिदिखंडयं विसमं जहण्णयादो उक्सस्सयं संखेज्जभागुत्तरं । पढमे टिदिखंडये हदे सव्वस्स तुल्लकाले अणियट्टिपविट्ठस्स टिदिसंतकम्मं तुल्लं ट्ठिदिखंडयं पि सव्वस्स अणियट्टिपविट्ठस्स विदियट्ठिदिखंडयादो विदियटिदिखंडयं तुल्लं । तदोप्पहुडि तदियादो तदियं तुल्लं । क० चु०, पृ० ७४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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