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________________ ३४६ क्षपणासार बंध घटनेतें एक स्थितिबंध होइ। ऐसैं संख्यात हजार स्थितिबंध भएं अनिवृत्तिकरणके कालका संख्यात भागनिविषै बहुभाग व्यतीत भए एक भाग अवशेष रह्या तहां असंज्ञी पंचेन्द्री समान स्थितिबंध हो है सो हजार सागरके चारि सातवां भाग मात्र मोहका, तीन सातवां भाग मात्र तीसीयनिका, दोय सातवां भाग मात्र वीसीयनिका स्थितिबंध हो है। चालीस तीस बीस कोडाकोडी सागरस्थितिकी अपेक्षा चारित्रमोहका नाम चालीसीय अर ज्ञानावरणादि च्यारिका नाम तीसीय, नाम गोत्रका नाम वीसीय जानना ॥४१५॥ ठिदिबंधसहस्सगदे पत्तेयं चदुरतियविएइंदी । ठिदिबंधसम होदि हु ठिदिबंधमणुक्कमेणेव ॥४१६॥ स्थितिबंधसहस्रगते प्रत्येकं चतुस्त्रिद्विएकेंद्री। स्थितिबंधसमं भवति हि स्थितिबंधमनुक्रमेणैव ॥४१६॥ स० चं०-पूर्वोक्त क्रम लीए संख्यात हजार स्थितिबंध प्रत्येक भएं अनुक्रमतें चौंद्री तेंद्री वेंद्री एकेंद्री समान स्थितिबंध हो है। तहां चौंद्री समान तौ सौ सागरका अर तेंद्री समान पचास सागरका. वेंद्री समान पचीस सागरका. एकेद्री समान एक सागरका च्यारि सातवां भागमात्र तो मोहका, तीन सातवां भागमात्र तीसीयनिका, दोय सातवां भागमात्र वीसीयनिका स्थितिबंध हो है। तहां एकेंद्री वेंद्री तेंद्री चौंद्री असंज्ञीकै सत्तर कोडाकोडी उत्कृष्ट स्थितिका धारक जो मिथ्यात्व ताका क्रमत एक पचीस पचास सौ हजार सागरका स्थितिबंध होइ तौ चालीस तीस बीस कोडाकोडी उत्कृष्ट स्थितिका धारक जो मोह अर ज्ञानावरणादि अर नाम गोत्र तिनका केता बंध होइ ऐसें त्रैराशिक कोएं पूर्वोक्त स्थितिबंधका प्रमाण आवै है। ऐसे ही त्रैराशिकका क्रम आरौं भी जानना ।।४१६॥ एइंदियट्ठिदीदो संखसहस्से गदे हु ठिदिबंधे । पल्लेकदिवड्डदुगं ठिदिबंधो वीसियतियाणं ॥४१७।। एकेंद्रियस्थितितः संख्यसहस्त्रे गते हि स्थितिबंधे। पल्यैकद्वयर्धद्विकं स्थितिबंधः वीसियत्रिकाणाम् ।। ४१७ ।। स० चं-एकेंद्रिय समान स्थितिबंध" परै संख्यात हजार स्थितिबंध गएं वीसीयनिका एक पल्य, तीसीयनिका ड्योढ पल्य, मोहका दोय पल्यमात्र स्थितिबंध हो है ।। ४१७ ॥ तक्काले ठिदिसंतं लक्खपुधत्तं तु होदि उवहीणं । बंधोसरणो बंधं ठिदिखंडं संतमोसरदिः ॥४१८॥ १. तदो संखेज्जेसु ट्ठिदिबंधसहस्सेसु गदेसु चदुरिदियट्ठिदिबंधसमगो ट्ठिदिबंधो जादो । एवं तीइंदियसमगो बीइंदियसमगो एइंदियसमगो जादो। क० चु० पृ० ७४४ । २. तदो एइंदियविदिबंधसमगादो द्विदिबंधादो संखेज्जेसु ट्ठिदिबंधसहस्सेसु गदेसु णामा-गोदाणं पलिदोवमट्टिदिगो बंधो जादो । ताधे णाणावरणीयदंसणावरणीय-वेदणीय अंतराइयाणं दिवढपलिदोवमट्टिदिगो बंधो। मोहणीयस्स पलिदोवमट्टिदिगो बंधो । क० चु० पृ० ७४४ । ३. ताधे द्विदिसंतकम्मं सागरोवमसदसहस्सपुधत्तं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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