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________________ अल्पबहुत्वनिर्देश कर्मनिका जघन्य स्थिति बंधापसरण काल अर अवरोहक अनिवृत्तिकरणका प्रथम समय विर्षे संभवता मोहका जघन्य स्थिति बंधापसरणकाल विशेष अधिक है ते दोऊ परस्पर समान हैं ४ । तातें अंतरकरण करनेका काल विशेष अधिक है। इहाँ कोऊ कहै-पूर्व स्थितिकांडकोत्करण कालके समान अतरकरण काल कह्या था इहाँ अधिक कैसे कहो हो ? ताका समाधान-पूर्वै तहाँ संभवता जो मध्य स्थिति कांडकोत्करण काल ताके समान अंतरकरण काल कहा था इहाँ जघन्य स्थितिकांडकोत्करण कालतें अधिक कह्या है । ५ । तातै आरोहक अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे संभवता ऐसा उत्कृष्ट स्थितिबंध काल कहिए जेते काल समानरूप उत्कृष्ट स्थितिबंध होइ ऐसा स्थितिबंधापसरण काल अर उत्कृष्ट स्थिति कांडकोत्करणकाल विशेष अधिक है ते दोऊ परस्पर समान हैं ॥३६६।। सुहमंतिमगुणसेढी उवसंतकसायगस्स गुणसेढी । पडिवदसुहुमद्धा वि य तिणि वि संखेज्जगुणिदकमा ।।३६७।। सूक्ष्मातिमगुणश्रेणी उपशांतकषायकस्य गुणश्रेणी। प्रतिपतत्सूक्ष्माद्धापि च तिस्रोपि संख्येयगुणितक्रमाः ॥३६७॥ सं० टी०–तत आरोहकसूक्ष्मसाम्परायचरमसमयसम्भविगलितावशेषो गणश्रण्यायामः संख्यातगण: २१।४ । ४ । ७, तत उपशान्तकषायस्य प्रथमसमये आरब्धगुणश्रण्यायामः संख्यातगण: २२।४। ४ । ४ । ८, ततः प्रतिपतत्सूक्ष्मसाम्परायकाल: २१४ । ४ । ४ । ४ । ९ ॥३६७।। स० चं०–तातें अवरोहक सूक्ष्मसाम्परायका अंत समयविर्षे संभवता ऐसा गलितावशेष गुणश्रेणी आयाम संख्यातगुणा है । ७ । तातै उपशांतकषायका प्रथम समयविषै आरंभ्या ऐसा गुणश्रेणि आयाम संख्यातगुणा है । ८ । तातै पडनेवाला सूक्ष्मसाम्परायका काल संख्यातगुणा है । ९॥३६७|| तग्गुणसेढी अहिया चलसुहुमो किट्टिउवसमद्धा य । सुहुमस्स य पढमठिदी तिण्णि वि सरिसा विसेसाहियां ॥३६८॥ तद्गुणश्रेणी अधिका चलसूक्ष्मः कृष्टयपशमाद्धा च । सूक्ष्मस्य च प्रथमस्थितिः तिस्रोऽपि सदृशा विशेषाधिकाः ॥३६८॥ १. चरिमसमयसुहुमसाम्पराइयस्स गुणसेढिणिक्खेवो संखेज्जगुणो। तं चेव गुणसे ढिसीसयं ति भण्णदि । उवसंतकसायस्स गुणसे ढिणिक्खेवो संखेज्जगुणो । पडिवदमाणयस्स सुहुमसांपराइयद्धा संखेज्जगुणा । वही, पृ० १९२७ । २. तस्सेव लोभस्स गणसेढिणिक्खेबो विसेसाहिओ। उवसामगस्स सुहमसांपराइयद्धा किट्रीणमवसामणद्धा सुहमसांपराइयस्स पढमट्टिदी च तिण्णि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ। वही, पृ० १९२७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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