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________________ ३१५ अल्पबहुत्व निर्देश चढ्या जीवकेँ स्त्रीवेदके उपशम करनेका जो काल तिस कालकौं प्राप्त होइ कहा सोक हैं हैं ॥३६२॥ ता चरिमसवेदो अवगदवेदो हु सत्तकम्मंसे । सममुवसामदि सेसा पुरिसोदयचलिदभंगा हु || ३६३।। तस्मिन् चरमसवेदो अवगतवेदो हि सतकर्मांशान् । सममुपशमयति शेषाः पुरुषोदयचलितभङ्गा हि ॥ ३६३ ॥ सं० टी०—तदा चरमसमयसवेदः स्त्रीनपुंसक वेदोपशमनं निष्ठापयति । ततः परमपगतवेदः सप्तनोपायान् सममुपशमयति । शेषं सर्वं पुंवेदारूढप्रकारेण ज्ञातव्यम् || ३६३॥ स० चं० - तहाँ सवेद अवस्थाका अन्त समयकों प्राप्त होता संता स्त्रीवेद नपुंसकवेदके उपशमनकौं 'युगपत् समाप्त करै है । तातं परै अवगतवेदी होत संता पुवेद अर छह हास्यादिक इन सात नोकषायनिक युगपत् उपशमावे है । अन्य सर्व पुरुषवेद सहित श्रेणी चढया जीवकें समान विधान जानना || ३६३|| अथोपशमश्र ण्यामल्पबहुत्वपदकथनप्रतिज्ञामाह कोहस् य उदए चलपलिदेपुव्वदो अपुव्वोत्ति । एदिस्से अद्धा अप्पा बहुगं तु वोच्छामि || ३६४॥ पुंक्रोधस्य च उदये चटपतितेऽपूर्वतः अपूर्व इति । एतस्य अद्धानामल्पबहुकं तु वक्ष्यामि ॥ ३६४ ॥ सं० टी०—पु·क्रोधोदयारूढा व रूढस्यारोहका पूर्वकरणप्रथमसमयात्प्रभृति अवरोहकापूर्वक रणचरमसमय पर्यन्ते काले सम्भवात्पबहुत्वपदानि वक्ष्यामि || ३६४।। स० चं० - पुरुषवेद अर क्रोध कषायका उदय सहित चढ्या पड्या जीवकै आरोहक अपूर्व करणका प्रथम समय लगाय अवरोहक अपूर्व करणका अन्त समय पर्यन्त कालविषै सम्भवते जे अल्पबहुत्व के स्थान तिनकों कहोंगा। इहाँ श्रेणी चढनेवालाका नाम तो आरोहक जानना । उतरनेवाला का नाम अवरोहक जानना । बहुरि जहाँ विशेष अधिक है तहाँ पूर्व किछु अधिक जानना । ऐसी संज्ञा है || ३६४ || अथ तान्येवाल्पबहुत्वपदानि व्याख्यातुं सप्तविंशतिगाथाः प्ररूपयतिअवरादो वरमहियं रसखंडुक्कीरणस्स अद्धाणं । संखगुणं अवरट्ठदिखंड सुक्कीरणो कालो ।। ३६५।। Jain Education International १. एतो पुरिसवे देण सह कोहेण उवट्ठिदस्स पढमसमयअपुव्वकरणमादि काढूण जाव पडिवदमाणस्स चरिमसमयअपुव्वकरणो त्ति एदिस्से अद्धाए जाणि कालसंजुत्ताणि पदाणि तेसिमप्पाबहुअं वत्तइस्लामो । वही, पृ० १९२५ । २. सम्पत्थोवा जहणिया अणुभागखंडयउक्कीरणद्धा । उक्कसिया अणुभागखंडयउक्कीरणद्धा विसेसाहिया । जहणिया द्विदिबंद्धगद्धा ट्टिदिखंडय उक्कीरणद्धा च तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ । वही, पृ० १९२६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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