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________________ ३१४ लब्धिसार सहित चढि पड्या जीव क्रोधका उदय आएँ द्रव्यकों अपकर्षणर्कार अंतरकों पूरे है ते मान सहित चढ पड्या जीव मानका उदय आए अर माया सहित चढि पड्या जीव मायाका उदय आए अर लोभ सहित चढि पड्या जीव लोभका उदय आएँ प्रथम समयविषै द्रव्यकौं अपकर्षणकरि जे अंतर करणविषे निषेक नष्ट कीए थे तिनविषै द्रव्यका निक्षेपणकरि तिनका सद्भाव करें है । इस प्रकार पुरुषवेद सहित क्रोधादियुक्त श्रेणि चढने उतरनेवालाका व्याख्यान जानना || ३६०|| atara य एवं अवगदवेदो हु सत्तकम्मंसे । समसामदि संढस्सुदर चडिदस्स वोच्छामि ।। ३६१ ।। स्त्री-उदयस्य च एवं अपगतवेदो हि सप्तकर्माशान् । सममुपशमयति षंढस्योदये चटितस्य वक्ष्यामि ॥ ३६१॥ सं० टी० - स्त्री वेदोदयेन सहितैः क्रोधादिकषायोदयः श्रेणिमारूढः, अपगतवेदोदयः सन्नेव सप्तनोकषायान् युगपदुपशमयति । अवशिष्टं सर्वमुपशमनविधानं पुंवेदारूढवद्द्रष्टव्यं ॥ ३६१ ॥ स० चं०—स्त्रीवेदयुक्त क्रोधादिकनिका उदय सहित श्रेणि चढ्द्या च्यारि प्रकार जीव है सो वेद उदय रहित होत संता पुरुषवेद अर छह हास्यादिकनिका इन सात नोकषायनिक युगपत् उपशमा है । अन्य सर्व विधान पुरुषवेदका उदय सहित श्रेणी चढ्या जीवके समान जानना ॥ ३६१ ॥ अथ षंढोदयारूढस्य विशेषं वक्ष्यामि - Jain Education International संदुदयंतरकरणो संद्वाणम्हि अणुवसंतसे । इस य अद्धा संढं इत्थि च समगमुवसमदि || ३६२ || ढोदयान्तरकरणः षंढाद्वायां अनुपशांतांशे । स्त्रियः च अद्धायां षंढ स्त्रीं च समकमुपशमयति ॥ ३६२ ॥ सं० टी० – नपुंसक वेदोदयेन सहितैः क्रोधादिकषायैः श्रेण्यारूढो नपुंसकवेदस्यान्तरं कुर्वाणः प्रथमस्थितिपुंवेदोदयारूढस्य नपुंसकस्त्री वेदोपशमनकालमंत्री स्थापयित्वा प्रागेव नपुंसक वेदोपशमनं प्रारभ्य पुंवेदारूढनपुंसकोपशमनकालपर्यन्तं गच्छति नाद्यापि नपुंसक वेदोपशमनं समाप्तं । ततः स्त्रीवेदोपशमनं प्रारम्य द्वावपि वेदावुपशमयन् पुंवेदारूढस्य स्त्रीवेदं पशमनकालमात्रमन्तर्मुहूर्त गत्वा । ३६२।। अब नपुंसक वेदका उदय सहित श्रेणी चढ्या विशेष है ताहि कहस्यों स० चं - नपुंसक वेद युक्त क्रोधादिकनिका उदय सहित श्र ेणी चढ्या च्यारि प्रकार जीव सो नपुंसकवेदका अन्तर करत संता पुरुषवेद सहित चढ्या जीवकँ नपुंसक वेद स्त्रीवेदकों उपशम करनेका जितना काल है तावन्मात्र नपुंसकवेदकी प्रथम स्थितिको स्थापै है । स्थापिकरि पुरुष वेद सहित चढ्या जीवकै नपुंसकवेदकें उपशमनकाल जो पाइए हैं ताका अन्तपर्यन्त कालकौं नपुंसक वेदकों उपशमावता संता प्राप्त भया परि या नपुंसक वेदका उपशम समाप्त न भया । तहाँ पीछे स्त्रीवेद नपुंसकवेद इनि दोऊनिका युगपत् उपशम करने लगा । तहाँ पुरुषवेद सहित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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