SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थितिबन्धविशेषकी प्ररूपणा २२९ तीन मान का द्वितीय स्थितिविषै तिष्ठता द्रव्यकौं समय-समय असंख्यातगुणा क्रम लीए उपशमा है। तहाँ ही संज्वलन क्रोधके समय घाटि उच्छिष्टावलीमात्र निषेक ते अपनी समान स्थिति लीएजे संज्वलन मानको उदयावलीके निषेक तिनविष समय-समय एक-एक निषेकका अनुक्रम करि संक्रमणरूप होइ ताके अनन्तरवर्ती समयविषै उदय हो है। इस प्रकार संक्रम होइ ताहीका नाम थिउक्क संक्रम कहिए है ।। २७३ ।। विशेष—यहाँ पुरुषवेदसे उपशमश्रेणिपर चढ़नेवाला जीव जब मान संज्वलनकी प्रथमस्थिति करता है उस समयसे अपकर्षित द्रव्यका निक्षेप किस विधिसे होता है इसे स्पष्ट करनेके लिए प्रसंग प्राप्त यह गाथा कही गई है। गाथामें केवल यह कहा गया है कि प्रथम स्थितिके शीर्षसे द्वितीय स्थितिमें असंख्यातगुणहीन द्रव्यका निक्षेप करता है। तथा उसके आगे अतिस्थापनावलिके पूर्वतक विशेषहीन द्रव्यका निक्षेप करता है। आश्रय यह है कि जिस समय यह जीव मानसंज्वलनकी प्रथम स्थिति करता है उस समय उदयस्थितिमें सबसे कम प्रदेशपुंजका निक्षेप करता है। उसके बादकी स्थितिसे लेकर गुणश्रेणिशीर्षके प्राप्त होने तक उत्तरोत्तर असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे द्रव्यका निक्षेप करता है । उसके बाद द्वितीय स्थितिके प्रथम निषेकमें प्रथमस्थितिके शीर्षसे असंख्यातगणे हीन द्रव्यका निक्षप करता है। तथा उसके बाद अतिस्थापनावलिके प्राप्त होनेके पूर्वतक विशेषहीन-विशेषहीन द्र व्यका निक्षेप करता है। यह क्रम प्रति समय चालू रहता है यहाँ प्रथम स्थिति एक आवलि अधिक अन्तमुहूर्तप्रमाण होती है। इसे समझकर इस निक्षेप विधिको जानना चाहिए । प्रति समय प्रथम स्थितिमें और द्वितीय स्थितिमें कितने द्रव्यका निक्षेप होता है इसे टीकासे जान लेना चाहिए। तथा मायासंज्वलनके सम्बन्धमें भी मानसंज्वलनके समान कथन कर लेना चाहिए। विशेषता न होनेसे हम खुलासा नहीं करेंगे। माणस्स य पढमठिदी सेसे समयाहिया तु आबलियं । तियसंजलणगबंधो दुमास सेसाण कोह आलावो' ।। २७४ ।। मानस्य च प्रथमस्थितिः शेषे समयाधिका तु आवलिकाम् । त्रिकसंज्वलनकबन्धो द्विमासं शेषाणां क्रोधआलापः ॥ २७४ ॥ सं० टी०-संज्वलनमानस्य प्रथमस्थितौ समयाधिकावल्यामवशिष्टायां उपशमनादिविधानः संख्यातसहस्रस्थितिबन्धापसरणेषु गतेषु मानोपशमनकालचरमसमये संज्वलनमानमायालोभानां स्थितिबंधो मासद्वयप्रमितो भवति । शेषकर्मणां स्थितिबन्धः संख्यातगुणहीनोऽपि क्रोधालापवत्तीसियादीनां पूर्वोक्ताल्पबहत्वयुक्तः संख्यातसहस्रवर्षमात्र एव ।। २७४ ।।। स० चं०-संज्वलन मानकी प्रथम स्थितिविषै समय अधिक आवली अवशेष रहैं संख्यात हजार स्थिति बन्धापसरण होनेत मानके उपशमकालका अन्तसमयविष संज्वलन मान माया लोभका स्थितिबन्ध दोय मास हो है। अर और कर्मनिका पूर्ब स्थितिबन्धतै संख्यातगुणा घटता है तथापि पूर्वोक्तवत् अल्पबहुत्व लिए संख्यात हजार वर्षमात्र स्थितिबन्ध हो है ।। २७४ ।। १. ताधे माण-माया-लोभसंजलणाणं दुमासट्ठिदिगो बंधो। सेसाणं कम्माणं ट्ठिदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । वही पृ० २९९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy