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________________ २२८ लब्धिसार सम्बन्धी जे निषेक तिनविष 'प्रक्षेपयोगोद्धृतमिश्रपिंड' इत्यादि विधानतें असंख्यातगुणा क्रम लीएं निक्षेपण करिए है। अवशेष बहुभागकौं द्वितीय स्थितिबिषै अन्तके अतिस्थापनावलीमात्र निषेक छोडि अन्य सर्व निषेकनिविषै 'दिवड्डगुणहाणिभाजिदे पढमा' इत्यादि बिधानतें विशेष घटता क्रम लीएं निक्षेपण करिए है। बहुरि द्वितीयादि समयनिबिर्षे प्रथम समयविष अपकर्षण कीया द्रव्यतै असंख्यातगुणा क्रम लोएं द्रव्यकौं अहि पूर्वोक्त प्रकार निक्षेपण करै है। बहुरि समय-समय उदय आया प्रथम स्थितिका एक-एक निषेककौं भोगवै है ।। २७२ ।। विशेष-जिस समय तीनों क्रोधोंका उपशम होता है उसके अनन्तर समयमें प्रथम स्थिति करनेके साथ उसी समय उसका वेदक भी होता है। तात्पर्य यह है कि इससे पहले मान संज्वलनकी प्रथम स्थिति गलकर समाप्त हो जाती है, क्योंकि उपशमणिमें क्रोधवेदक जीव क्रोधकी प्रथम स्थितिको छोड़कर शेष तीन कषायोंकी प्रथम स्थिति एक आवलिप्रमाण करता है जो इस समय नहीं पाई जाती. इसलिए वह मान संज्वलनकी द्वितीय स्थितिमेंसे प्रति समय असंख्यात कर्मपुंजका अपकर्षण कर उसका उदय समयसे निक्षेप करता है, इसीलिए ही यहाँ इस जीवको प्रथम स्थितिका कारक और वेदक कहा है। पढमट्ठिदिसीसादो विदियादिम्हि य असंखगुणहीणं । तत्तो विसेसहीणं जाव अइच्छावणमपत्तं ॥ २७३ ।। प्रथमस्थितिशीषंतः द्वितीयादौ च असंख्यगुणहीनम् । ततो विशेषहीनं यावत् अतिस्थापनमप्राप्तम् ॥ २७३ ॥ सं० टी०-प्रथमस्थितिचरमसमयनिक्षिप्तद्रव्यात द्वितीयस्थितिप्रथमनिषेके निक्षिप्तद्रव्यमसंख्यातगुणहीनं, प्रथमस्थितिशोर्षद्रव्यस्य पल्यभागहारभूतासंख्यातरूपबाहुल्यविशेषादसंख्यातसमयप्रबद्धमात्रत्वात् । द्वितीयस्थितिप्रथमनिषेकनिक्षिप्तद्रव्यस्य च द्वयर्धगुणहान्यपकर्षणभागहारभक्तत्वेनैकसमयप्रबद्धासंख्येयभागमात्रत्वात् । ततो द्वितीयस्थितेः प्रथमनिषेकद्रव्यादुपरितननिषेकेषु विशेषहीनक्रमेणातिस्थापनावलेरधोनिक्षिप्तद्रव्यं विशेषतोसंख्येयगुणहीनमेव । संज्वलनमानस्य प्रथमस्थितिकरणवेदनप्रथमसमयादारभ्य मानत्रयस्य द्वितीयस्थितिद्रव्यं प्रतिसमयमसंख्यातगुणितक्रमेणोपशमयति । तदैव संज्वलनक्रोधस्य समयोनोच्छिष्टावलिमात्रनिषेकद्रव्यमपि संज्वलनमानस्योदयावल्यां समस्थितिनिषेकेषु प्रतिसमयमेकैकनिषेकक्रमेण संक्रम्य उदयमागमिष्यति । संज्वलनक्रोधोच्छिष्टावलि निषेकाः मानोदयावलिनिषेकेषु संक्रम्य अनन्तरसमयेषुदयमागच्छन्तीति तात्पर्यम् । अयमेव थिउक्कसंक्रम इति भण्यते ॥ २७३ ॥ स० चं०-प्रथम स्थितिका शीर्ष जो अन्तसमय तीहिंविषै निक्षेपण कीया जो द्रव्य तातें द्वितीय स्थितिका प्रथम निषेकवि निक्षेपण कीया द्रव्य असंख्यातगुणा घटता है। तातै प्रथमस्थितिका शीर्षविषै तौ भागहार पल्य ताका भागहार असंख्यात है। तातें असंख्यात समयप्रबद्धमात्र द्रव्य निक्षेपण करै है। अर द्वितीय स्थितिका प्रथम निषेकविषै भागहार द्वयर्ध गुणहानि है । तातै समयप्रबद्धका असंख्यातवाँ भागमात्र द्रव्य निक्षेपण हो है। बहुरि द्वितीय स्थितिका प्रथम निषेकतें उपरि निषेकनिविषै विशेष घटता क्रम लीए यावत् अतिस्थापनावली प्राप्त न होइ तावत् द्रव्यका निक्षेपण हो है । बहुरि संज्वलन मानको प्रथम स्थितिका प्रथम समयतें लगाय १. विदियट्ठिदीए जा आदिट्ठिदी तिस्से असंखेज्जगुणहीणं, तदो विसेसहीणं चेव । वहो पृ० २९६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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