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स्थितिबन्धके क्रमव्यत्ययका निर्देश
बीसियादिकनिका पल्य ड्योढ पल्य दोय पल्य स्थितिबन्धके परै वीसयनिका तौ पल्यका संख्यात बहुभागमात्र अर तीसीय मोहका पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र आयाम धरै ऐसे संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण गएं वीसीयनिका पल्यके संख्यातवें भागमात्र तीसयनिका पल्यमात्र
त्रभाग अधिक पल्यमात्र स्थितिबन्ध एक कालविष हो है। बहरि तातै परै वीसीय तीसीयनिका पल्यका संख्यात बहभागमात्र मोहका पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र आयाम धरै ऐसे संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण गएं वीसिय तीसीयनिका पल्यके संख्यातवें भागमात्रमोहका पल्यमात्र स्थितिबन्ध हो है। इहां विशेष इतना वीसियकै तें तीसियका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हो है। बहुरि तातै परै तीनोंहीकै पल्यका संख्यात बहुभागमात्र आयाम धरै ऐसे संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण गएं नाम गोत्रका दूरापकृष्टि है नाम जाका ऐसा पल्यका
तिवां भागमात्र अर तीसीय मोहका यथायोग्य पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र स्थितिबन्ध भया । इहाँ विशेष इतना तीसीयकेतै मोहका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। बहुरि तातै परै वीसीयका पल्यका असंख्यातबहभागमात्र अर तीसीय मोहका पल्यका संख्यातबहभागमात्र प्रमाण धरै ऐसे-संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण गएं वीसियनिका पल्यका असंख्यातवाँ भागमात्र तीसयनिका दूरापकृष्टि है नाम जाका ऐसा पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र अर मोहका यथायोग्य पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्ध युगपत् हो है । इहां तीसीयके चालीसियका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा जानना । बहुरि तातै परै वीसीय तीसीयनिका पल्यका असंख्यात बहुभागमात्र मोहका पल्यका संख्यात बहुभागमात्र प्रमाण घरै ऐसे संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण गएं वीसीय तीसीयनिका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र मोहका दूरापकृष्टि है नाम जाका ऐसा अन्तका पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्ध हो है। इहां वीसीयकेतै तीसीयका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा जानना। बहुरि तातें पर तीन्योहीका पल्यका असंख्यात बहुभागमात्र प्रमाण लीएं ऐसे संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण गएं तीनोंहीका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध हो है। इहां वीसीयकेतै तीसीयका तीसीयकेतै मोहका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा जानना। इहां पर्यन्त तौ ऐसैं अनुक्रमतै बन्ध हो है । आगें अन्य अनुक्रम हो है सो दिखाइए है ।। २३२ ॥ अथात : परं वीसियादीनां क्रमव्यत्यासप्रदर्शनार्थमिदमाह
मोहगपल्लासंखट्ठिदिबंधसहस्सगेसु तीदेसु । मोहो तीसिय हेट्ठा असंखगुणहीणयं होदि' ॥ २३३ ।। मोहगपल्यासंख्यस्थितिबन्धसहस्रकेष्वतीतेषु ।
मोहः तीसियं अधस्तना असंख्यगुणहीनकं भवति ॥ २३३ ॥ सं० टी०--वीसियादीनां त्रयाणामपि पल्यासंख्यातकभागमात्रस्थितिबन्धात्परं संख्यातसहस्रषु पल्यासंख्यातबहभागमात्रेषु स्थितिबन्धापसरणेषु गतेषु वीसियमोहतीसियानां स्वस्वप्राक्तनानन्तरस्थितिबन्धेभ्य असंख्येयगणहीनाः पल्यासंख्यातैकभागमात्राः स्थितिबन्धा जायन्ते । तत्र सर्वतः स्तोक वीसियस्थितिबन्धः । ततोऽसंयेयगुणो मोहस्थितिबन्धस्तस्मादसंख्येयगुणस्तीसियस्थितिबन्धः । इदानींतनविशुद्धिविशेषकृतस्थितिबन्धा
१. तदो जो एसो टिठदिबंधो णामा-गोदाणं थोवो। मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो । इदरेसि पि चदुण्हं कम्माणं छिदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो। वहो पृ० २४४ ।
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