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________________ १५० लब्धिसार बन्धः संख्येयगुणा सा अं को २ ॥ १५ । तस्मादपूर्वकरणप्रथमसमयसंभव्युत्कृष्टस्थितिबन्धः संख्येयगुणः ४।४।४ सा अं को २ ॥ १६ । अस्मादेकान्तवृद्धिचरमसमयसंभविजघन्यस्थितिसत्त्वं संख्येयगुणं सा अं को २ ॥ १७ । ४।४ एतस्मादपूर्वकरणप्रथमसमयसंभवदुत्कृष्टस्थियिसत्त्वं संख्ययगुणं सा अं को २ ॥ १८ ॥ १७८-१८३ ॥ सं० चं०-सर्वतें स्तोक तौ देशसंयतका एकान्तवृद्धि कालका अंतविर्षे संभवता जघन्य ण्डोत्करण काल है। १। तातै किछ विशेषकरि अधिक अपर्वकरणका प्रथम समविर्षे संभवता उत्कृष्ट अनुभाग खण्डोत्करण काल है। २। तातै संख्यातगुणा देशसंयतका एकांतवृद्धि कालका अंतसमयविर्षे सम्भवता जघन्य स्थितिकांडकोत्करण काल है । ३ ॥ १७८ ॥ सं० चं०–तात किछू विशेषकरि अधिक अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे संभवता उत्कृष्ट स्थितिखण्डोत्करण काल है। ४ । तातै संख्यातगुणा एकांतवृद्धिकाल है । ५ । तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका काल है । ६ ॥१७९ । __ सं० चं०-तातें संख्यातगुणा मिथ्यात्व अर सम्यग्मिथ्यात्व अर सम्यक्त्वमोहनी इन तीनोंका उदयकाल अर असंयम अर देशसंयम अर सकल संयम इन छहौंका जघन्य काल परस्पर समान है ।। ७ ॥ तारौं संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे जाका आरम्भ भया ऐसा देशसंयमसम्बन्धी गुणश्रेणि आयाम है । ८ ।। १८० ॥ ___सं० चं०-तारौं संख्यातगुणा एकान्तवृद्धिको अन्तसमयविष सम्भवते स्थितिबन्धका जघन्य आबाधाकाल है । ९ । तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे सम्भवते स्थितिबन्धका उत्कृष्ट आबाधाकाल है । १० । इहां पर्यन्त ए कहे सर्वकाल ते प्रत्येक अन्तमुहूर्तमात्र ही जानने । तातै असंख्यातगुणा एकान्तवृद्धिका अन्तसमयविर्षे सम्भवता जघन्य स्थितिकाण्डक आयाम है । ११ ।। १८१ ॥ सं० चं०-यहु कह्या अन्तविर्षे सन्भवता जघन्य स्थितिकाण्डकायाम सो पल्यका संख्यातवाँ भागमात्र है। तातै पूर्वोक्त अन्तमुहूर्तकालतें यहु अन्त खण्ड असंख्यातगुणा कह्या है ।। १८२॥ सं० चं० - तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे सम्भवता जघन्य स्थितिकाण्डक आयाम है । १२ । तातै संख्यातगुणा पल्य है । १३ । तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे सम्भवता पृथक्त्व सागरप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकायाम है । १४ । तातै संख्यातगुणा एकान्तवृद्धिका अन्त समयविर्षे सम्भवता ऐसा जघन्य स्थितिबन्ध है । १५ । तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे सम्भवता ऐसा जघन्य उत्कृष्ट स्थितिबन्ध है । १६ । तातै संख्यातगुणा एकान्तवृद्धिका अन्त समयविर्षे सम्भवता ऐसा जघन्य स्थितिसत्त्व है। १७ । तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे सम्भवता ऐसा उत्कृष्ट स्थितिसत्त्व है । १८ । ॥ १८३ ॥ ऐसें कालका अल्पबहुत्वके स्थिति कहि देशसंयमविर्षे परिणामनिकी विशुद्धतारूप लब्धि ताका अल्पबहुत्व कहिए है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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