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________________ कृतकृत्यकालके भीतर विशेष प्ररूपणा १२९ विशुद्धता सहित होइ तथापि पूर्व भए थे करणरूप परिणाम तिनिकी विशुद्धताका जो संस्कार ताके वशते समय समय प्रति असंख्यातगुणा द्रव्यकौं अपकर्षणकरि उदीरणा करै है। गुणश्रेणि आयाम विना किंचित् द्रव्यकौं उदयावलीविषै देइ अवशेषकौं उपरितन स्थितिविष दीया तातै इहां गुणश्रेणि नाहीं है ।। १५० ॥ सं० चं०-यद्यपि असंख्यात समयप्रबद्धनिकी उदीरणा पूर्व-पूर्व समयसम्बन्धी उदीरणा द्रव्यतै असंख्यागुणा क्रम लीए है तथापि अन्तकांडककी अन्तफालिका द्रव्यकौं गुणे गुणश्रेणि आयामविष दीया था तिस गुणश्रेणिरूप जो उदय आया निषेक ताका द्रव्यतै यहु उदीरणा द्रव्य असंख्यातवां भागमात्र ही है। जातें यह उदीरणा द्रव्य तौ सर्वद्रव्यको अपकर्षण भागहारका भाग देइ तहां एक भागको पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग दीए एक भागमात्र है अर जो तिस गुणश्रेणिका निषेक उदयरूप है ताका द्रव्य सर्व द्रव्यको असंख्यातगुणा पल्यवर्गमूलका भाग दीए एक भागमात्र है तातै कृतकृत्य वेदकका प्रथमादि समयसम्बन्धी निषेकनिविर्षे इहां उदयावलीविर्षे दीया द्रव्य उदीरणा द्रव्य सो पूर्व पाइए है जो सत्तारूप द्रव्य तारौं असंख्यातगुणा घाटि है । बहुरि कृतकृत्य वेदक कालविर्षे एकसमय अधिक आवली अवशेष रहैं पूर्व अपकर्षण कीया द्रव्यतै असंख्यातगुणा द्रव्यकौं स्थितिका अंतनिषेक जो उदयावलीत उपरिवर्ती एक निषेक तातै अपकर्षणकरि ताके नीचे एक समय घाटि आवलीका दोय तीसरा भाग प्रमाण निषेकनिकौं अतिस्थानपनरूप राखि ताके नीचे एक समय अधिक आवलीका त्रिभागमात्र निषेकनिविर्षे द्रव्य दीजिए है तहां तिस अपकर्षण कीया हुवा द्रव्यकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां एक भागमात्र द्रव्यकौं उदय समयत लगाय यथायोग्य असंख्यात समयसम्बन्धी निषेकनिविर्षे असंख्यातगुणा क्रमकरि दीजिए है। तहां तिस अपकर्षण कीयो हवा द्रव्यकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ तहां एक भागमात्र द्रव्य तौ उदय समयतै लगाय यथायोग्य असंख्यात समयसम्बन्धी निषेकनिविर्षे असंख्यातगुणा क्रमरि दीजिए है अर अवशेष बहुभागमात्र द्रव्यकौं अतिस्थापना ताका जो नीचेका समय ताकौं छोडि ताके नीचे अवशेष आवलीका त्रिभागमात्र निषेकनिविर्षे विशेष घटता क्रमकरि निक्षेपण करिए है। यहु ही उत्कृष्ट उदीरणा है। यातै अधिक उदीरणाका द्रव्य नाहीं। ऐसै अनुभागका तौ अनुसमय अपवर्तनकरि अर कर्म परमाणूनिकी उदीरणा करि यह कतकत्य वेदक सम्यग्दृष्टी. रही थी जो सम्यक्त्व मोहनीकी अं स्थिति तामै उच्छिष्टावली विना सर्व स्थिति है सो प्रकृति स्थिति अनुभाग प्रदेशनिका सर्वथा नाश लीए जो एक एक निषेकका एक एक समयविष उदयरूप होइ निर्जरना ताकार नष्ट हो है, बहुरि ताका अनन्तर समयविर्षे उच्छिष्टावलीमात्र स्थिति अवशेष रहैं उदीरणाका भी अभाव भया, केवल अनुभागका अपवर्तन है सो पूर्व अनुभाग अपवर्तन कह्या था ताते याका अन्य लक्षण है, उदयरूप प्रथम समयतै लगाय समय समय अनन्तगुणा क्रमकरि वर्ते है ताकरि प्रकृति स्थिति अनुभाग प्रदेशनिका सर्वथा नाश पूर्वक समय समय प्रति उच्छिष्टावलीके एक एक निषेकौं गालि निर्जरारूप करि ताका अनन्तर समयविर्षे जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टी हो है ।। १५१ ॥ विदियकरणादिमादो कदकरिणज्जस्स पढमसमओ त्ति । वोच्छं रसखंडुक्कीरणकालादीणमप्पबहु ॥१५२ ।। १. सणमोहणोयक्खवगस्स पढमसमए अपुव्वकरणमादि कादण जाव पढमसमयकदकरणिज्जो त्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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