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________________ सम्यक्त्वप्रकृते कार्यविशेषनिरूपणम १२३ करणकालश्च परिसमाप्तः । पुनरवशिष्टेऽनिवृत्तिकरणकालचरसमये सम्यक्त्वप्रकृतिचरमकाण्डकचरमफालि पातयति ॥ १४३ ।। सं० चं०-सम्यक्त्वमोहनीका अन्त कांडककी प्रथम फालिका पतन समयतें लगाय द्विचरम फालिका पतन समय पर्यन्त उदयादि गलितावशेष गुणश्रेणि आयाम जानना । उदयादि वर्तमान समयतै लगाय इहां गुणश्रेणि आयाम पाइए है तातै उदयादि कहिए अर एक-एक समय व्यतीत होते एक-एक समय गुणश्रोणि आयामविर्षे घटता जाय है तातै गलितावशेष कह्या है। ऐसे उदयादि गलितावशेष गुणश्रेणि आयाम जानना। बहुरि पूर्वोक्त विधानकरि अन्त कांडककी द्विचरम फालिका पतन होते कांडकोत्करण कालका अनिवृत्तिकरण कालविर्षे एक समय अवशेष रह्या अनिवृत्तिकरणका अन्त समयविर्षे अन्त कांडकको अन्तिम फालिका पतन हो है ॥ १४३ ।। चरिमं फालिं देदि दु पढमे पव्वे असंखगुणियकमा । अंतिमसमयम्हि पुणो पल्लासंखेज्जमूलाणि ॥ १४४ ।। चरमं फालिं ददाति तु प्रथम पर्वे असंख्यगुणितक्रमेण'। अंतिमसमये पुनः पल्यासंख्येयमूलानि ॥ १४४ ।। सं० टी०-सम्यक्त्वप्रकृतिचरमकाण्डकचरमफालिनिक्षेपक्रमप्रदर्शनार्थमाह-गलितावशिष्टे कृतकृत्यवेदककालप्रमिते सांप्रतगुणवण्यायामे अनिवृत्तिकरणकालचरमसमये सम्यक्त्वप्रकृतिचरमकाण्डकचरमफालिद्रव्यमुत्कीर्य निक्षिपति । तथाहितच्चरमफालिद्रव्यं किंचिन्यूनद्वयर्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमानं स । १२-सर्वद्रव्यस्याधोगलित. ७ । ख । १७ निषेकैः कृतकृत्यकालान्तर्मुहुर्तमात्रनिषेकैश्च न्यूनत्वात् । तच्चरमफालिद्रव्यमसंख्यातगुणितपल्यप्रथममूलभागहारेण म ३ अनेन खंडयित्वा तदेकभागं स a।१२--उदयसमयात्प्रभृति सांप्रतगुणश्रणिद्विचरमसमयपर्यन्तं प्रक्षप ७। ख । १७ Fa विधिना प्रतिनिषेकमसंख्यातगुणितक्रमण निक्षिपेत् । अत्राय विशेषः-- द्वितीयनिषेके निक्षेपगुणकारात तृतीयनिषेकनिक्षेपगुणकारः असंख्यातगुणितगुणकारगुणितः । एवं १० द्विचरमनिषेकपर्यन्तं गुणकारक्रमो ज्ञातव्यः । अवशिष्टबहभागद्रव्यं स । १२ - इदं सांप्रगुणश्रेणि ७ । ख । १७ मूa चरमनिषेके निक्षिपेत् । इदं सर्व मनसिकृत्य सांप्रतगुणश्रेण्या उदयनिषेकात्प्रभृति द्विचरमनिषेकपर्यन्तं प्रथमपर्वेत्युक्तं । चरमनिषेके द्वितीयं पर्वेत्युक्तम् ।। १४४ ।। सं. चं०-इहां अनिवृत्तिकरणका अन्त समयविष व्यतीत भए पीछे अवशेष रह्या सो ऐसा गलितावशेष गुणश्रेणि आयाम सो कृतकृत्य वेदककालका प्रमाण है। ताका द्विचरम समय पर्यंत तो प्रथम पर्व अर ताका अन्त समय सो दूसरा पर्व जानना। तहां सम्यक्त्वमोहनीका सर्वद्रव्यविष व्यतीत भए निषेक अर अवशेष रहे कृतकृत्य कालमात्र निषेक तिनिका द्रव्य घटाए १. गुणगारो वि दुचरिमाए ट्ठिदोए पदेसग्गादी चरिमाए ट्ठिदीए पदेसग्गस्स असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । क० चू०, 'जयध० पु० १३, पृ० ७९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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