SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ लब्धिसार द्वितीये पर्वणि प्रथमपर्वायामात् संख्यातगुणितायामे 'अद्धाणेण सव्वधणे' इत्यादिविधानेन स्वचरमनिषेकपर्यन्तं विशेषहीनक्रमेण निक्षिपेत् । पुनरवशिष्टैकभागं तृतीयस्मिन् पर्वणि उपरितनस्थितिसमयादारभ्य तच्चरमनिषेकपर्यन्तं द्वितीयपर्वायामसंख्यातगुणत्वात् द्विचरमकाण्डकायामात् २० । ४ । ४ संख्यातगुणितायामे २ ू । ४ । ४ । ४ ‘अद्धाणेण सम्पधणे' इत्यादिविधानेन विशेषहीनक्रमेण तत्तदपकृष्टनिषेकस्याधस्तादतिस्थापनावलि मुक्त्वा निक्षिपेत् । अत्र साम्प्रतगुणश्र णिशीर्षनिक्षिप्तद्रव्यात् काण्डकप्रथमनिषेके निक्षिप्तद्रव्यमसंख्यातगुणहीनं तदपकृष्टद्रव्या संख्यातबहुभागस्य प्रथमपर्वणि निक्षेपात् तदेकभागस्य च द्वितीयपर्वणि निक्षपात् । तथा द्वितीयपर्वचरमनिषेके निक्षिप्तद्रव्यात् तृतीयपर्वनिषेके निक्षिप्तद्रव्यमसंख्यातगुणहीनं एकभागासंख्यातबहुभागस्य द्वितीयपर्वणि निक्षपात् शेषैकभागस्य च तृतीयपर्वणि निक्ष ेपात् । एवं चरमकाण्डकप्रथमफालिपतनसमयादारभ्य तद्विचरमफालिपतनसमयपर्यन्तं द्रव्यनिक्ष पक्रमो विशेषेण ज्ञातव्यः ।। १४१-१४२ ॥ सं० चं० - तहाँ प्रथमपर्वविषै द्रव्य असंख्यातगुणा दीजिए है सो कहिए है - सम्यक्त्वमोहनीका सर्वद्रव्यविषै पूर्वनिषेकनिकरि सर्वद्रव्यके असंख्यातवें भागमात्र द्रव्य घटाएं अवशेष किंचिदून द्वगुणहानि गुणित समयप्रबद्धमात्र अंतकाण्डकका द्रव्य है । ताको अपकर्षण भागहारका भाग देइ तहां एक भागग्रहि ताकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग देइ तहां बहुभाग तौ प्रथम पर्व विषै 'प्रक्षेपयोगोद्धत्त' इत्यादि विधान तें असंख्यात्तगुणा क्रमकरि देना । बहुरि अवशेष एक भागकौं पल्यका असंख्यातवाँ भागका भाग देइ तहां बहुभाग दूसरा पर्व विषै 'अद्धाणेणसव्वधणे' इत्यादि विधानतैं चय घटता क्रमकरि देना । प्रथम पर्वतैं दूसरा पर्वका आमाम संख्यातगुणा जानना । बहुरि अवशेष एकभाग तीसरा पर्व विषे 'अद्धाणेण सव्वधणे' इत्यादि विधानतें चय घटता क्रमकरि अपकर्षण कीया निषेकनिके नीचे अतिस्थापनावलि छोडि नीचै निक्षेपण करना । द्वितीय पर्वत संख्यातगुणा द्विचरमकांडकका आयाम है तातें भी तीसरे पर्वका आयाम संख्यातगुणा है । निषेकनिके प्रमाणका नाम इहां आयाम जानना । इहां अब जाका प्रारम्भ भया ऐसा जो गुणश्रेणिका आयामरूप प्रथम पर्व ताका शीर्ष जो अन्त निषेक ताविषै जो द्रव्य निक्षेपण किया तैं कांडकका प्रथम निषेकतें जो दूसरे पर्वका प्रथम निषेक तीहिविषै निक्ष ेपण कीया द्रव्य असंख्यातगुणा घाटि है । बहुरि द्वितीय पर्वका अन्त निषेकविषै जो द्रव्य निक्षेपण या तातें तृतीय पर्वका प्रथम निषेकविषै निक्षेपण कीया द्रव्य असंख्यातगुणा घाटि है । जाते पूर्वं कथन अनुसारि ऐसें ही सम्भव है । ऐसें ही अन्त कांडककी प्रथम फालिका पतनरूप जो अन्त कांडकोत्करण कालका प्रथम समयतें लगाय द्विचरम फालिका पतनरूप जो अन्त कांडकोत्करण कालका उपान्त समय तहां पर्यंत द्रव्य निक्ष ेपण करनेका विधान जानना ॥ १४१-१४२॥ उदयादिगलिदसेसा चरिमे खंडे हवेज्ज गुणसेढी । फाडेदि चरिमफालिं अणियट्टीकरणचरिमम्हि ॥ १४३ ॥ Jain Education International उदयाविगलितशेषा चरमे खंडे भवेत् गुणश्रेणी । पातयति चरम फालिमनिवृत्तिकरणचरमे ॥ १४३ ॥ सं० टी० -- सांप्रतगुणश्र णिस्वरूपनिर्देशपूर्वकं चरमफालिपातनकालनिर्देशार्थमिदं सूत्रमाह – सम्यक्त्व - चरमकाण्डकप्रथमफालिपातनसमयादारम्य विधीयमाना गुणश्रेणी तच्चरमफालिपातनपर्यंतं उदयसमयादिगलितावशेषायामा वेदितव्या । पूर्वोक्तविधानेन द्विचरमफालिपातने एकसमयावशेषः काण्डकोत्करणकालः, अनिवृत्ति - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy