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________________ १२० लब्धिसार २ २४ । ४ संख्यातगुणितं सदपि तद्योग्यान्तर्मुहूर्तप्रमाणमेवेति ग्राह्यम् । तथा सति तच्चरमकाण्डकप्रमाण मियद् भवति २२।४ । ४ । ४ । चरमकाण्डकमधः अवशिष्टप्रमाणं च २२।४ इदमवस्थितिगुण श्रेण्यायामसंख्यातकभागमात्रं भवदपि गलितावशेषगणश्रेण्यधिकशीर्षसंख्यातबहभागमात्रेण कृतकृत्यकेदककालेन काण्डकोत्करणकालप्रमितेनानिवृत्तिकरणकालगलितावशेषेण च २१। निष्पन्नप्रमाणं २ १।४ अपवर्तिते ४ । ४ ४।४ एवं २२॥१३९ ॥ सं० चं०-अष्ट वर्ष स्थिति करनेका प्रथम समयत लगाय इहां द्विचरम कांडकका अंत पर्यंत जो अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम है ताकी संख्यात भाग दीए तहां बहुभागनिका जो प्रमाण अर अपूर्वकरणका प्रथम समयतै लगाय आठ वर्ष स्थिति करनेका समयतें पूर्व समय पर्यंत जो गलितावशेष गुणश्रेणि आयाम था ताविर्षे जो अनिवृत्तिकरण कालका संख्यातवां भागमात्र जो गुणश्रेणि शीर्ष कह्या ताकौ संख्यानका भाग दीए एक भागका जो प्रमाण अर अवस्थिति गुणश्रेणिका अंत निषेकरूप जो शीर्ष ताके ऊपरिवर्ती निषेकरूप जो उपरितन स्थिति तीहि वि द्विचरम कांडक विषै जिनि निषेकनिका अभाव कीया तिनिके नीचे जे निषेक अवस्थिति गुणश्रेणि आयामका बहुभागतै संख्यातगुणे अवशेष रहे। ऐसै अवस्थिति गुणश्रोणि आयामका संख्यातवां भाग अर गलितावशेष गुणश्रेणिका संख्यातवां भाग अर उपरितन स्थितिके अवशेषनिषेक इन तीनोंकौं जोड़ें जो प्रमाण होइ सोई अंतकांडकायामका प्रमाण है। भावार्थ यह-गलितावशेष गुणश्रेणि आयामका संख्यातवां भागतें लगाय उपरितन स्थितिके जे निषेक अवशेष रहे तिनिका अंतपर्यंत अंत कांडकायामका प्रमाण है । सो यह द्विचरमकांडकायामका प्रमाण तौ संख्यातगणा है तो भी यथायोग्य अंतर्मुहर्तमात्र हो है। बहुरि तिस अंतकांडक करि घात कीएपी, जो नीचें अवशेष स्थिति रहै ताका प्रमाण अवस्थिति गुणश्रेणि आयामके संख्यातवें भागमात्र है सो पूर्वं जो गलितावशेष गुणश्रेणि आयामविर्षे अनिवृत्तिकरण कालका संख्यातवें भागमात्र जो गुणश्रेणि शीर्ष कह्या था ताकौं संख्यातका भाग दीए बहभागमात्र तो कृतकृत्य वेदक काल अर व्यतीत भए पीछे अवशेष रह्या जो अनिवत्तिकरणका काल तीहिं प्रमाण अंतकांडकोत्करण काल इनि दोऊनिकौं मिलाए तिस अवशेष स्थितिका प्रमाण हो है ॥ १३९ ।। सम्मत्तचरिमखंडे दुचरिमफालि त्ति तिण्णि पव्वाओ। संपहियपुव्वगुणसेढीसीसे सीसे य चरिमम्हि ॥ १४० ॥ सम्यक्त्वचरमखण्डे द्विचरमफालीति त्रीणि पर्वाणि । साम्प्रतिकपूर्वगुणधेणिशीर्षे शीर्षे च चरमे ॥ १४०॥ सं० टी०-सम्यक्त्वप्रकृतिचरमखण्डप्रथमफालिपतनसमयादारभ्य तद्विचरमफालिपतनसमयपर्यन्तं तत्काण्डकोत्करणकाले फालिद्रव्यस्यापकृष्टद्रव्यस्य च निक्ष पविशेषविधानार्थमिदं सूत्रमाह-नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती । तद्यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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