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लब्धिसार
प्रथम स्थितिप्रथमसमये निक्षिपेत् । पुनद्वतीयादिसम येष्वष्टवर्ष चरमसमयपर्यंतं एतादृश विशेषहीनक्रमेण निक्षिपेत् । एवं निक्षिप्ते गुणश्रेणिचरम समयद्रव्यात्तदनंतरोपरितनस्थितिप्रथमसमय द्रव्यमसंख्यातगुणितं भवति, पल्या संख्यातबहुभागद्रव्यस्य तत्र निक्षेपात् ॥ १२९ ॥
सं० चं० - अवशेष बहुभागनिके द्रव्यकौं गुणश्रेणि आयाममात्र अंतर्मुहूर्त घाटि अष्ट वर्षप्रमाण जो उपरितन स्थिति ताके निषेकनिविषै 'अद्धाणेण सव्वधणे खंडिदे' इत्यादि विधानकरि प्रथम निषेकनिविषै द्रव्य निक्षेपण करें अर तातें द्वितीयादि निषेकनिविषै समान प्रमाणरूप चय घटता क्रमकरि निक्षेपण करे है जैसे ही दीएं गुणश्रेणिके अंत निषेकका द्रव्यतें उपरितन स्थिति के प्रथम निषेकका द्रव्य असंख्यातगुणा हो है । जातें इहां बहुभागका निक्षेपण करें है अर स्थितिका प्रमाण स्तोक है ।। १२९ ।।
विशेष - पहले गुणश्रेणिमें कितने द्रव्यका निक्षेप होता है इसका विधान कर आये हैं । आगे गुणश्रेणिके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कालको छोड़कर जो अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्ष प्रमाण सम्यक्त्वस्थितिसत्त्व शेष रहता है उसमें शेष बहुभागप्रमाण द्रव्यका किस विधिसे निक्षेप होता है उसका इस गाथासूत्र में निर्देश किया गया है। आशय यह है कि यहाँसे लेकर प्रति समय गुणश्रेणिशीर्षके उपरितन निषेक में जितना द्रव्य निक्षिप्त होता है उससे असंख्यातगुणा द्रव्य इससे उपरितन स्थिति में निक्षिप्त होता है मात्र इससे आगेकी सब स्थितियोंमें उत्तरोत्तर एक-एक चय घटते हुए क्रमसे arat निक्षेप होता है । इससे यह ज्ञात होता है कि यहाँसे लेकर उदयादि अवस्थित गुणश्रेणिकी रचना प्रारम्भ हो जाती है ।
सम्यक्त्वा आठ वर्ष प्रमाण स्थितिसत्त्व होनेसे लेकर गुणश्रेणि और स्थितिकाण्डक के प्रमाणका निर्देश—
अवसादो उवरिं उदयादिअवद्विदं च गुणसेढी ।
अंतोमुहुत्तियं ठिदिखंड च य होदि सम्मस्स ॥ १३० ॥
अष्टवर्षातुपरि उदयाद्यवस्थितं च गुणश्रेणी ।
अंतर्मुहूतिकं स्थितिखंडं च च भवति सम्यक्त्वस्य ॥ १३० ॥
सं० टी० -- सम्यक्त्व प्रकृते रष्टवर्षमात्रस्थितिकरणसमयादूर्ध्वमपि न केवल मष्ट वर्षमात्रस्थितिक रणसमय maratथतिगुणश्रेणिरित्यर्थः, सम्यक्त्वप्रकृतेरन्तर्मुहूर्तायामं स्थितिखंडं भवति ।। १३० ।।
सं० चं० – सम्यक्त्वमोहनीकी अष्ट वर्ष स्थिति करनेके समयत लगाय उपरि सर्व समयनिविष उदयादि अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम है । बहुरि सम्यक्त्वमोहनीकी स्थितिविषै स्थितिखंड अंतर्मुहूर्त मात्र आयाम धरै है । इहांतें अब एक एक स्थिति कांडककरि अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त स्थिति घटाइए है ।। १३० ॥
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१. एत्तो पाए अंतोमुहुत्तियं ट्ठिदिखंडयं । क० चू०, जयध० भा० १३ पृ० ५९ । तम्हा एत्तो पहुडि सम्मत्तस्स उदयादिअवद्विदगुण से ढिणिक्खेवो होइ त्ति घेत्तव्वो । जयध० भा० १३, पृ० ६४ ।
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