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________________ १०४ लब्धिसार सहस्रस्थिति कांडकगुणसंक्रमविधानेनोच्छिष्टावलिमात्रनिषेकान वर्जयित्वा निक्षिप्ते सम्यग्मिथ्यात्वद्रव्यमियद्भवति-- स । १२ - अत्रापि संख्यातसहस्रस्थितिकांडकगुणसंक्रमविधानेन चरमकांडकचरमफालिं विहाय इतरकांडकद्रव्यं ७ । ख १७ सर्वं सर्वद्रव्यासंख्यातकभागमात्र स । १२- सम्यक्त्वप्रकृतिद्रव्ये स । १२७। ख । १७ । a ७। ख । १७ । ग स्वस्याष्टवर्षस्थितरुपरि चरमकांडकचरमफालिद्रव्यं मक्त्वा इतरसर्वकांडकद्रव्यमपि गणसंक्रमकालद्विचरमसमय 10.. पर्यंत निक्षिप्य तच्चरमसमये मिश्रचरमफालिद्रव्यं स a।१२-a, सम्यक्त्वचरमफालिद्रव्यं स । १२-a ७ । ख १७ a ७। ख । १७ गुa एतद्रव्यद्वये मिलिते एवं स ११२ - 1 इदं सर्व मनस्यवधार्याचार्य: "मिस्सदुमचरिमफाली किंचूणदिवड्ढसमय ७। ख । १७ पवद्धपमा" इत्युक्तं ।अस्माच्चरमफालिद्वयद्रव्यात्पल्यसंख्यातकभागं स । १२- गृहीत्वा सम्यक्त्वप्रकृते ७। ख १७प रवशिष्टाष्टवर्षमात्रस्थितौ उदयावलिप्रथमसमयादारभ्य प्रागारब्धगलितावशेषगणश्रेणिशीर्षपर्यंत प्रतिनिषेकमसंख्यातगुणितक्रमण निक्षिप्य तदनंतरोपरितनकसमयेऽप्यसंख्यातगुणं । इतः प्रभृत्यवस्थितगुणश्रेणिप्रतिज्ञानात्पुन ॥१२८ ॥ स्तद्बहुभागद्रव्यमिदं स a१२ -प a ७ । ख । १७।प a स० चं०-मिश्रमोहनी अर सम्यक्त्वमोहनीकी जे अंतको दोय फालि तिनिका द्रव्य किंचित् ऊन द्वयर्धगुणहानिगुणित समयप्रबद्धप्रमाण है सोई कहिए है मिश्रमोहनीका जो द्रव्य तावि उच्छिष्टावली विना अन्य सर्व मिथ्यात्व प्रकृतिके द्रव्यकौं संख्यात हजार स्थितिकांडक अर गुणसंक्रम विधानकरि निक्षेपण कीया तहां जो मिश्रमोहनीका द्रव्य भया तहां भी संख्यात हजार स्थितिकांडक अर गुणसंक्रमण विधान करि जो अंत कांडककी अन्त फालिका द्रव्य भया सो तौ जुदा राख्या अर इसके अन्य कांडक द्रव्य सर्व द्रव्यके असंख्यातवें भागमात्र हैं ताका सम्यक्त्व मोहनोविर्षे निक्षेपण कीया अर सम्यक्त्वमोहनीका द्रव्य अपना आठ वर्षको स्थितिके उपरिवर्ती जो अन्त कांडककी अंत फालिका द्रव्य ताकौं छोडि और सर्व कांडकनिका द्रव्यकौं भी संक्रमणकालका द्विचरम समयपर्यंत तहां अष्ट वर्षमात्र अवशेष स्थितिविर्षे निक्षेपण करि तिस संक्रमण कालका अंत समयविर्षे मिश्रमोहनीको अर सम्यक्त्वमोहनीकी अंतकी जे दोय फालि तिनिका द्रव्य मिलाएं किंचित् ऊन द्वयर्ध गुणहानिगुणित समयप्रबद्धप्रमाण द्रव्य हो है । भावार्थ यहु-मिश्रमोहनीका गुणसंक्रम करि यावत् सम्यक्त्वमोहनीरूप परिणमै तावत् गुणसंक्रम काल कहिए ताका अंत समयविर्षे मिश्रमोहनीका उच्छिष्टावलोमात्र सम्यक्त्वमोहनीका अष्ट वर्षमात्र निषेक विना अन्य सर्व द्रव्य तिनिको अत दोय फालिनिका जानना सो किंचिदन द्वयर्द्ध गुणहानिगुणित समयप्रबद्धप्रमाण है। सो अष्ट वर्ष स्थिति अवशेषकरणके समयविर्षे इनि दोय फालिनिके पतन करनेके अथि तिनिके द्रव्यकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दोएं तहां एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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