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________________ ८२ अथ प्रथमोपशमसम्यक्त्वकालात्परमुदयोग्य कर्मविशेषमाह - लब्धिसार अंतमुत्तमद्धं सव्वोवसमेण होदि उवसंतो । तेण परमुदओ खलु तिणेकदरस्स कम्मस्स ॥ १०२॥ अंतर्मुहूर्तमद्धा सर्वोपशमेन भवति उपशांतः । तेन परं उदयः खलु त्रिष्वेकतरस्य कर्मणः ॥ १०२ ॥ सं० टी० - अंतर्मुहूर्तमध्वानं अंतर्मुहूर्त कालपर्यंतं सर्वेषां दर्शनमोहस्य प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशानामुपशमेन उदयायोग्यभावेन जीवः उपशांतः उपशमसम्यग्दृष्टिर्भवति । तेण परं तस्मादुपशमसम्यक्त्वकालात्परं तिसृणां दर्शनमोहप्रकृतीनामेकतमस्य कर्मणः उदयो भवत्येव ।। १०२ ।। अब प्रथमोपशमसम्यक्त्वके कालके बाद उदय योग्य कर्मविशेषका कथन करते हैं ।स० चं० - अंतर्मुहूर्त कालपर्यंत सर्व दर्शनमोहका उपशमकरि उपशम सम्यग्दृष्टि हो है । तातें पीछें तीन दर्शनमोहकी प्रकृतिनिविषै एक कोईका उदय नियमतें होइ, उपशम सम्यवत्वके ऊपरि ताका उदय है ॥ १०२ ॥ अथ दर्शन मोहांतरपूरणविधानांतरमाह उवसमसम्मत्तुवरिं दंसणमोहं तुरंत पूरेदि । उदयलिस्मुदयादो से साणं उदयवाहिरदो ॥ १०३ ॥ उपशमसम्यक्त्वोपरि दर्शनमोहं त्वरितं पूरयति । उदीयमानस्योदयतः शेषाणामुदयबाह्यतः ॥१०३॥ सं० टी० - प्रथमोपशमसम्यक्त्वस्योपरि तत्कालचरमसमयस्योपर्यंनंतरसमये दर्शनमोहस्य द्वितीयस्थितिद्रव्यमपकृष्य उदयवतोऽतर मुदयावलिप्रथमनिषेकादारभ्य उदयहीनस्य उदयावलिवाह्य प्रथम निषेकादारभ्य निक्षिप्य पूरयति ॥ Jain Education International अब दर्शनमोहक अन्तरको पूरण करनेकी विधि कहते हैं स० चं० - उपशम सम्यक्त्वके ऊपरि ताका अंत समय के अनंतरि दर्शनमोहकी अंतरायामके ऊपरिवर्त्ती जो द्वितीय स्थिति ताके निषेकनिका द्रव्यकों अपकर्षण करि अंतरको पूरै है । भावार्थ यहु-उपशम सम्यक्त्वका कालतें संख्यातगुणा जो अंतरायामके ऊपरिवर्त्ती जो द्वितीय अन्तरायाम तीहिविषै उपशम सम्यक्त्वका काल प्रमाण निषेकरूप तौ अभावरूप रहे ते उपशम सम्यक्त्वकालविषै व्यतीत भए । बहुरि अवशेष अंतरायामके निषेक रहे ते अभावरूप थे तिनिविषै द्वितीय स्थितिका द्रव्य निक्षेपण करि बहुरि तिनिका सद्भाव करें हैं। तहां जिस प्रकृतिका उदय पाइए ताका तौ उदयावलिके प्रथम निषेकतें लगाय अर उदय हीन प्रकृतिनिका उदयावलीतें बाह्य निषेकतें लगाय तिस अपकर्षण कीया द्रव्यकौं अंतरायामविषै वा द्वितीय स्थितिविषै निक्षेपण करे है ॥१०३॥ १. कसाय० गा० १०३ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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