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प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त करने योग्य सामग्री
अव सासादन गुणस्थानके स्वरूप और उसके कालप्रमाणका कथन करते हैं
स० चं० - उपशम सम्यक्त्वका कालविषै उत्कृष्ट छह आवलि जघन्य एक समय अवशेष अनंतानुबंधी क्रोधादिविषै एक कोई उदय होनेतें सम्यक्त्वकौं विराधि मिथ्यात्वकौं प्राप्त न हो बीचमें सासादन हो है ॥ १०० ॥
अथ सिंहावलोकनन्यायेनोपशमसम्यक्त्व प्रारंभसामग्रीमाह
सायारे पट्ठवगो णिट्ठवगो मज्झिमो य भजणिज्जो ।
जोगे अण्णदरम्हि दु जहण्णए तेउलेस्साए ।। १०१ ।। साकारे प्रस्थापको निष्ठापकः मध्यमश्च भजनीयः ।
योगे अन्यतरस्मिन् तु जघन्यके तेजोलेश्यायाः ॥ १०१ ॥ |
सं० टी० - साकारे सविकल्पे उपयोगे ज्ञानोपयोग वर्तमानो जीवः प्रथमोपशमसम्यक्त्व प्रारंभको भवति । तन्निष्ठापको मध्यमश्च भजनीयो विकल्पनीयः, साकारे वा अनाकारे वा उपयोगे वर्तत इत्यर्थः । अन्यतरस्मिन् योगे मनोवाक्काययोगाना नेकस्मिन् योगे वर्तमानः प्रथमोपशमप्रारंभको भवति । तथा — यद्यपि तिर्यग्मनुष्यो वा मंदविशुद्धिस्तथापि तेजोलेश्याया जघन्यांशे वर्तमान एव प्रथमोपशमसम्यक्त्वारंभको भवति । नरकगतो नियताशुभलेश्यात्वेऽपि कषायाणां मन्दानुभागोदयवशेन तत्त्वार्थश्रद्धानानुगुणकारण परिणामरूपविशुद्धिविशेषसंभवस्याविरोधात् । देवगतौ सर्वोऽपि शुभलेश्य एव प्रथमोपशमसम्यक्त्व प्रारंभको भवति ॥ १०१ ॥
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अब सिंहावलोकन न्यायसे उपशमसम्यक्त्वको प्रारम्भिक सामग्रीका कथन करते हैं
स० चं० – साकार जो ज्ञानोपयोग ताकों होते ही जीवकैं प्रथमोशम सम्यक्त्वका प्रारंभ हो है । अर ताका निष्ठापक कहिए सम्पूरण करनेवाला अर मध्य अवस्थावर्ती जीव भजनीय है । साकार अथवा अनाकार उपयोग युक्त होइ । भावार्थ यहु - के दर्शनोपयोगी होइ के ज्ञानोपयोगी होइ । बहुरि तीन योगनिविषै कोई एक योगविषै वर्तमान प्रथम सम्यक्त्वका प्रारंभ हो है । बहुरि तिर्यंच मनुष्य है सो मंद विशुद्धतायुक्त है तो भी तेजोलेश्याका जघन्य अंश ही विषै वर्तमान जीवप्रथम सम्यक्त्वका प्रारंभक हो है । अशुभलेश्याविषै न हो है । बहुरि यद्यपि नरकविषै नियमतें अशुभलेश्या है तथापि तहां जो लेश्या पाइए है तिस लेश्याका मंद उदय होतें प्रथम सम्यक्त्व का प्रारंभक हो है । बहुरि देवकेँ नियमतें शुभलेश्या है, तहां वर्तमान जीव ताका प्रारंभक हो है ॥ १०१ ॥
विशेष - जो मन्द विशुद्धिवाला तिर्यञ्च और मनुष्य प्रथमोपशम सम्यक्त्वका उपार्जन करता है उसके कमसे कम पीतलेश्याका जघन्य अंश अवश्य होता है । केवल पीतलेश्या के जघन्य अश रहते हुए ही वह प्रथमोपशम सम्यक्त्वका उपार्जन करता है यह 'जहण्णए तेउलेस्साए' इस पदका अर्थ नहीं है । शेष कथन सुगम है ।
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१. सागारे पट्टवगो णिट्ठवगो मज्झिमो य भजियव्वो । जोगे अण्णदरम्मि जहण्णगो तेउलेस्साए । कसाय, गा० ८९, जयध० भा० १२, १० ३०६ ( अवलोकनीय) |
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