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________________ ७८ लब्धिसार २। पदानि २० । ततः अपूर्वकरणप्रथमसमयोत्कृष्टस्थितिखंडं संख्येयगुणं सागरोपमपृथक्त्वमात्रं सा ७ । पदानि २१ । ततः प्रथमस्थितिचरमसमये मिथ्यात्वस्य जघन्यस्थितिबन्धः संख्येयगणोंऽतःकोटीकोटिसागरोपमप्रमितः सा अं को २ । पदानि २२ । तस्मादपूर्वकरणप्रथमसमयोत्कृष्टस्थितिबन्धः संख्येयगुणः सा अंको २ । पदानि २३ । ४४४ ४। ४ ततः प्रथमस्थितिचरमसमये मिथ्यात्वस्य जघन्यस्थितिसत्वं संख्येय गुणं सा अंको २। पदानि २४। ततोऽपूर्वकरण प्रथमसमये उत्कृष्टस्थितिसत्त्वं संख्मेयगुणं सा अं को २ । पदानि २५ । इति दर्शनमोहोपशमकस्याल्पबहुत्वपदानि पंचविंशतिः कथितानि ॥ ९६ ।। स० चं०-तात असंख्यातगुणा जघन्य स्थितिकांडकायाम है सो प्रथम स्थितिविर्षे एक स्थितिकांडकोत्करण काल अवशेष रहैं जो अतका स्थितिखंड पल्यका असंख्यातवां भागप्रमाण प्रारंभ कीया सो ग्रहणा ।।२०।। तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे संभवता उत्कृष्ट स्थितिकांडकायाम पृथक्त्व सागरप्रमाण है ।।२१।। तातै संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समय विर्षे प्रथम स्थितिका अत समयविर्षे संभवता मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिविर्षे बंध है ॥२२॥ तातें संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविर्षे संभवता उत्कृष्ट स्थितिबंध है ।।२३।। तातै संख्यातगुणा प्रथम स्थितिका अंत समयविर्षे संभवता मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्त्व है ॥२४॥ तातें संख्यातगुणा अपूर्वकरणका प्रथम समयविौं संभवता उत्कृष्ट स्थितिसत्त्व है ।।२५।। इहां जघन्य स्थितिबंधादि च्यारि पदनिका प्रमाण सामान्यपने अंतःकोटाकोटी सागरप्रमाण है। औसैं जायगा अल्पबहुत्व कहया ॥१६॥ विशेष-इस अल्पबहुत्वमें २०वाँ अल्पबहुत्व जघन्य स्थितिकाण्डकोत्करण काल है, सो इससे मिथ्यात्व कर्मकी अपेक्षा प्रथम स्थितिमें स्तोक काल शेष रहने पर जो मिथ्यात्वसम्बन्धी अन्तिम स्थितिकाण्डकके पतनमें काल लगता है उसका ग्रहण करना चाहिए। तथा अन्य कर्मोंकी अपेक्षा गुणसंक्रम कालके स्तोक शेष रहने पर जो उनके अन्तिम स्थितिकाण्डकके पतनमें काल लगता है उसका ग्रहण करना चाहिए। इसी प्रकार जो २२ वाँ अल्पबहुत्व जघन्य स्थितिबन्ध है, सो इससे मिथ्यात्वकर्मका जो अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें जघन्य स्थितिबन्ध होता है उसका ग्रहण करना चाहिए तथा शेष कर्मोंका गुणसंक्रमके अन्तिम समयमें जो जघन्य स्थितिबन्ध होता है उसका ग्रहण करना चाहिए । इसी प्रकार २४ वें जघन्य स्थितिसत्त्वरूप अल्पबहुत्वका विचार करते समय मिथ्यात्वका मिथ्यादृष्टिके अन्तिम समय सम्बन्धी स्थितिसत्त्वको ग्रहण करना चाहिए तथा शेष कर्मोंका गुणसंक्रमकालके अन्तिम समयमें होनेवाले स्थितिसत्त्वको ग्रहण करना चाहिए। अथ प्रथमोपशमसम्यक्त्वग्रहणसमयस्थितिसत्त्वमाह अंतोकोडाकोडी जाहे संखज्जसायरसहस्से । णूणा कम्माण ठिदी ताहे उवशमगुणं गहइ ।।९७।। अंतःकोटोकोटिर्यदा संख्येयसागरसहस्रेण । न्यूना कर्मणां स्थितिः तदा उपशमगुणं गृह्णाति ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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