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________________ स्थितिसत्त्व सम्बन्धी विशेष विचार सं०टी०-जाहे-यस्मिन् काले प्रथमोपशमसम्यक्त्वं गह्णाति ताहे-तस्मिन् समये कर्मणां स्थितिसत्त्वं संख्ययसागरोपमसहस्रोनांत:कोटीकोटिमात्रं भवति सा अं को २ । अथवा यस्मिन् काले अन्तरायामप्रथम समये कर्मणां स्थितिसत्त्वं संख्येयसागरोपमसहस्रोनांतःकोटीकोटिमात्रं भवति तस्मिन् काले प्रथमोपशमसम्यक्त्वगुणं गृह्णाति ।। ९७ ॥ अब प्रथमोपशमसम्यक्त्वके ग्रहणके समय जो स्थितिसत्त्व रहता है उसका कथन करते हैं स० चं०-जिस अन्तरायामका प्रथम समयविर्षे संख्यात हजार सागर करि हीन अंतः कोटाकोटीमात्र स्थितिसत्त्व होइ तिस समयविर्षे उपशमसम्यक्त्वगुणकौं ग्रहण करै है ॥९७।। ___ विशेष-तात्पर्य यह है कि अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जितना स्थितिसत्त्व होता है उससे तीनों करण परिणामोंके द्वारा संख्यात हजार सागरोपम घटकर स्थितिसत्त्व प्रथमोपशम सम्यक्त्वके प्रथम समयमें शेष रहता है। अथ देशसकलसंयमाभ्यां सह प्रथमोपशमसम्यक्त्वं गृह्णतः कर्मस्थितिसत्त्वविशेषमाह तहाणे ठिदिसत्तो आदिमसम्मेण देससयलजमं । पडिवज्जमाणगस्स वि संखेज्जगुणेण हीणकमो ॥९८॥ तत्स्थाने स्थितिसत्त्वं आदिमसम्यक्त्वेन देशसकलयमं । प्रतिपद्यमानस्य संख्येयगुणेन हीनक्रमं ॥९८॥ सं० टी०-तट्ठाणे अंतरायामप्रथमसमये प्रथमोपशमसम्यक्त्वेन सह देशसंयमं प्रतिपद्यमानस्य पूर्वस्मादवस्थितिसत्त्वात् संख्येयगुणहीनं स्थितिसत्त्वं भवति सा अं को २ सम्यक्त्वकरणविशुद्धः सकाशाद्देशसंयमकरण ४।४ विशद्धिविशेषस्थानंतगुणत्वेन तत्कार्यस्य स्थितिखंडायामस्य संख्येयगुणत्वोपलंभात खंडितावशिष्टस्थितिसत्त्वस्य संख्येयगुणहीनत्वं युक्तमिति पुनस्तेनैव प्रथमोपशमसम्यक्त्वेन सह सकलसंयमं प्रतिपद्यमानस्य कर्मणां स्थितिसत्त्वं पूर्वस्मात्संख्येयगुणहीनं भवति-सा अं को २ । देशसंयमहेतुविशुद्धः सकाशात् सकलसंयमहेतुविशुद्धेरनंत ४। ४।४ गुणत्वेन तत्कार्यस्य स्थितिखंडस्य संख्येयगुणत्वात् खंडितावशिष्ट स्थितिसत्त्वं ततः संख्येयगुणहीनं सुघटमेवेति ॥ ९८॥ ___ अब देशसंयम और सकलसंयमके साथ प्रथमोपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करनेवाले के जितना स्थितिसत्त्व होता है उसका कथन करते हैं स. चं-तिस ही अन्तरायामका प्रथम समयरूप स्थानविर्षे जो देशसंयम सहित प्रथमोपशम सम्यक्त्वकौं ग्रहै तौ ताके स्थितिसत्त्व पूर्वोक्ततै संख्यातगुणा घाटि हो है अर जो सकलसंयमसहित प्रथम सम्यक्त्वकौं ग्रहै प्राप्त होइ ताकै स्थितिसत्त्व तिसत भी संख्यातगुणा घाटि हो है । जातें अनंतगुणी विशुद्धताके विशेषतँ स्थितिखंडायाम संख्यातगुणा हो है। तिनि करि घटाई हुई अवशेष स्थिति संख्यातवे भाग संभव है ॥९८।। १. ध० पु० ६ पृ० २६८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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