SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लब्धिसार तस्मात्कारणात् द्वितीयकरणपरिणामः अपूर्वकरण इति निर्दिष्टः । प्रथमसमयसर्वोत्कृष्टविशुद्धद्वितीयसमयजधन्य विशुद्धिरनंतगुणा भवतीति पूर्वोत्तरसमयपरिणामयोः सादृश्यं दूरोत्सारितमेव । अधःप्रवृत्त करणचरमसमये अप्राप्ता एव परिणामा अपूर्वकरणप्रथमसमये जायते । तत्राप्राप्ता एव परिणामास्तद्वितीयसमय जायते । एकमातच्चरमसमयमपूर्वा एव परिणामा जायते । इत्यन्वर्था अपूर्वकरणसंज्ञा ॥ ५१ ॥ स० चं-जाते ऊपरि समयसंबंधी परिणाम हैं ते नीचले समयसंबंधी परिणामनिके समान इहाँ न होइ । प्रथम समयको उत्कृष्ट विशुद्धतातें भी द्वितीय समयसंबंधी जघन्यविशुद्धता भी अनंतगुणी है । ऐसें परिणामनिका अपूर्वपना है तातें दूसरा करण अपूर्वकरण कह्या है ।। ५१॥ विशेष-जिसमें प्रति समय अपूर्व-अपूर्व परिणाम होते हैं उसे अपूर्वकरण कहते हैं । इसका काल अन्तर्मुहूर्त है जो अधःप्रवृत्तकरणके कालके संख्यातवें भागप्रमाण है। इस कालमें कुल परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण होकर भी प्रत्येक समयके परिणाम भी असंख्यात लोकप्रमाण होते हैं । वे सब परिणाम प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समयतक उत्तरोत्तर सदृश वृद्धिको लिये हुए हैं। प्रथम समयके परिणामोंमें अन्तर्मुहर्तका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना प्रथम समयसे लेकर उत्तरोत्तर वृद्धि या चयका प्रमाण है । प्रत्येक समयमें प्राप्त होनेवाले ये सब परिणाम अपूर्वअपूर्व होते हैं, इसलिये यहां भिन्न समयवाले जीवोंके परिणामोंकी तद्भिन्न समयवाले जीवोंके परिणामोंके साथ अनुकृष्टि नहीं बनती। किन्तु एक समयवाले जीवोंके परिणामोंमें सदृशता-विसदृशता बन जाती है। यही कारण है कि इस गुणस्थानमें एक समयवाली ही निर्वगणा स्वीकार की गई है। अब अपूर्वकरणके उक्त स्वरूपको स्पष्ट करनेके लिये यहाँ कल्पित अंक संदष्टि देते हैं कूल परिणामोंकी संख्या ४०९६; अन्तर्मुहूर्तका प्रमाण ८; चयका प्रमाण १६; नियम यह है कि एक कम पदके आधेको पद और चयसे गुणित करनेपर उत्तरधन प्राप्त होता है । यथा-८१-७२=५४८४ १६ = ४४८ | इसे सर्वधन ४०९६ मेंसे कम करनेपर ४०९६ - ४४८ = ३६४८ शेष रहते हैं। इसमें पद ८ का भाग देनेपर ३६४८८% ४५६ लब्ध प्राप्त होता है। यह अपूर्वकरणके प्रथम समयके कूल परिणामोंका योग है। इसमें उत्तरोत्तर एक-एक चय १६ जोडनेपर द्वितीयादि समयोंमें प्राप्त होनेवाले परिणामोंकी संख्या क्रमसे ४७२, ४८८, ५०४, ५२०, ५३६, ५५२ और ५६८ होती है। यथा समय कुल योग Mrm For 9 परिणाम १ से ४५६ तक ४५७ से ४७२ ,, ९२९ ,, ४८८ ॥ १४१७ ,, ५०४ , १९२१ ,, ५.० , २४४१ ,, ९३६ , २९७७ ,, ५५२ ॥ ३५२९ ,, ५६८ , नये परिणामोंका योग ९२८ १४१६ १९२० २४४० २९७६ ३५२८ ४०९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy