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________________ अधःप्रवृत्तकरण में शुद्धिका विचार ३५ विशेष - अधः प्रवृत्तकरणका काल अन्तर्मुहूर्त है । उसका अंक संदृष्टिकी अपेक्षा प्रमाण १६ लिया है | इनमेसे प्रारम्भके १५ समयोंमें ऊर्ध्वगत श्रेणिकी प्रथम पंक्ति में क्रमसे ३९, ४०, ४१, ४२, ४३, ४४, ४५,४६, ४७, ४८, ४९, ५०, ५१, ५२, ५३ परिणाम हैं तथा १६ वें समयकी तिर्यक् पंक्ति में ५४, ५५, ५६ और ५७ परिणाम हैं । इन सब परिणामोंका योग ९१२ होता है जो परस्पर में विसदृश है । अर्थात् अंक संदृष्टिकी अपेक्षा अधःप्रवृत्तकरण के कालका प्रमाण १६ कल्पित करके उनमें जो ३०७२ परिणाम बतलाये गये हैं उनमें से उक्त ९१२ परिणाम अपुनरुक्त होने से परस्पर में विसदृश हैं - यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इन परिणामोंकी अंकुशाकार रचनाका निर्देश हम पहले ही कर आये हैं । इस प्रकार अधःप्रवृत्तकरणके परिणामोंके स्वरूपका निरूपण किया ।। ४९ ॥ अथापूर्वक रणलक्षणमाह पढमं व विदियकरणं पडिसमयमसंखलोग परिणामा । अहिकमा हु विसेसे मुहुत्तअंतो हु पडिभागो" ।। ५० ।। प्रथमं व द्वितीयकरणं प्रतिसमय मसंख्यलोकपरिणामाः । अधिकक्रमा हि विशेषे मुहूर्तातर्हि प्रतिभागः ॥ ५० ॥ सं० टी० - यथाधः प्रवृत्त करणपरिणामाः व्याख्यातास्तथापूर्वकरणपरिणामा व्याख्यातव्याः । अयं तु विशेषः - अधःप्रवृत्त करणपरिणामेभ्यः अपूर्वकरणपरिणामा असंख्येयलोकगुणिता भवंति । ते च प्रतिसमयं विशेषाधिका गच्छति यावदपूर्वकरण चरमसमयपरिणामान् प्राप्नुवंति । विशेष आनेतव्ये आदिधनस्यान्तर्मुहूर्तमात्रः प्रतिभागहारः स्यात् ॥ ५० ॥ अब अपूर्वकरणका लक्षण कहते हैं सं० चं० - प्रथम अधः करणवत् दूसरा अपूर्वकरण है । तहां विशेष - जो असंख्यात लोकमात्र अधःकरण के परिणामनितें अपूर्वकरणके परिणाम असंख्यात लोकगुणे हैं । ते समय समय प्रति विशेष जो समान प्रमाणरूप चय ताकरि अधिक हैं । सो प्रथम समयसंबंधी परिणामनिकौं अन्तर्मुहूर्त का भाग दीएं चयका प्रमाण आवै है ॥ ५० ॥ ०२ जम्हा उवरिमभावा हेट्ठिमभावेहिं णत्थि सरिसत्तं । तम्हा विदियं करणं अपुव्वकणं ति णिहिं ॥ ५१ ॥ यस्मादुपरिभावानामधस्तनभावैः नास्ति सदृशत्वम् । तस्मात् द्वितीयं करणमपूर्वकरणमिति निर्दिष्टम् ॥ ५१ ॥ सं० टी० - यस्मात्कारणादुपरितनसमयवर्तिपरिणामानामधस्तन समयवर्तिपरिणामैः सदृशत्वं नास्ति Jain Education International १. एक्के कम्मि समए परिणामट्ठाणाणि असंखेज्जा लोगा जयध० भा० १२, पृ० २५२ । अपुव्वकरणपढमसमए परिणाम पंतिआयामो थोवो | विदियसमए विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? असंखेज्जलोगपरिणाद्वाणमेत्तो । होंतो वि पढमसमयपरिणामपतिमंतो मुहुत्त मेत्तखंडाणि कादूण तत्थ एयखंडमेत्तो । एवमतरोणिधाए विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव चरिमसमयपरिणामपंतिआयाओ त्ति । जयध० भा० १२, पृ० २५३ । २. वरि समए समए अपुव्वाणि चेव परिणामद्वाणाणि । जयध० भा० १२, पृ० २५३ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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