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________________ ३४ ७ ज० १ (१). १ ज. ४३६ ११ ज. ༧ ནཱ ཡ ४० ८ (३) ९ ४८४ उ. ज. Jain Education International ༧ ८० ३ ५३४ उ. लब्धिसार ज. ज. १२१ १६३ ४ (२) ५ (१) १ १६२ उ. ज. ज. ४८५ ५३५ १२ (४) १३ MWWW १० ५८५ उ. WWWVI ४ (२) ५ २९४ ३४० उ. उ. २ २०५ उ. ज. ५८६ १४ ज. २०६ ६ ११ ६३७ उ. ३ २४९ उ. ज. ६३८ १५ ज. २५० १२ (४) ६९० उ. 60 ज. ६९१ १६ । १३ ७४४ उ. ज. ज. ज. २९५ ३४१ ३८८ ८ (३) ९ १० १४ ७९९ उ. ६ ७ ३८७ ४३५ उ. उ. -m For Private & Personal Use Only १५ ८८५ उ. (१) यह १ से लेकर १६ तक संख्या अधः प्रवृत्तकरणके समयोंकी सूचक है । (२) ( ) ब्रेकेट के भीतरको संख्या कहाँसे किस संख्यावाला निर्वर्गणाकाण्डक चालू हुआ इसकी सूचक है । (३) १, ४० आदि संख्या उस उस समयके उस उस संख्याक जघन्य परिणामकी सूचक है। और १६२, २०५ आदि संख्या उस-उस समय के उस उस संख्याक उत्कृष्ट परिणाम की सूचक है । (४) पहले गाथा ४६ में यह बतला आये हैं कि प्रत्येक षट्स्थान पतित वृद्धि में उसका आदि अष्टकप्रमाण होता है और अन्त ऊर्वकस्वरूप होता है । तदनुसार पिछले उत्कृष्ट स्थानसे अगला जघन्य स्थान अनन्तगुण वृद्धिस्वरूप जानना चाहिए और प्रत्येक उत्कृष्ट स्थान अनन्तभाग वृद्धिस्वरूप जानना चाहिए। पढमे करणे पढमा उड्ढगसेढीय चरिमसमयस्स । तिरियगखंडाणोली असरित्थाणंतगुणियकमा ।। ४९ ।। 1228 m2 १६ ९१२ उ. सं० टी० - अधःप्रवृत्तकरणे प्रथमसमयप्रथम खंड जघन्य परिणामादारभ्य द्विचरमसमयप्रथमखंड जघन्यपरिणामपर्यंता ऊर्धगा जघन्यपरिणामश्रेणिः, चरमसमय तिर्यक्खंड परिणामश्रेणिश्च उपरि सादृश्याभावादसदृशी अनंतगुणितक्रमा च वेदितव्या ॥ ४९ ॥ एवमधः प्रवृत्तकरणपरिणामस्वरूपं निरूपितम् । स० चं - प्रथम करणविषै समय समय के परिणामनिकी ऊपर ऊपर पंक्ति कीएं अर अंत समय परिणामनिकी बरोबर तिर्यक्रूप पंक्ति कोएं अंकुशाकाररचना हो है । सो इनके ऊपरिके परिणामनितें समानता नाहीं तातै असदृश हैं । बहुरि ए परिणाम अनंतगुणा क्रम लीएं विशुद्धतारूप जानना । ऐसें अधःकरणका स्वरूप कह्या ॥ ४९ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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