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________________ अधःप्रवृत्तकरणमें शुद्धिका विचार ३३ उत्तरोत्तर अनन्तगुणी विशुद्धिको लिये हुए होता है। अंक संदृष्टिके अनुसार पहले समयका १ संख्याक जघन्य परिणाम अधःप्रवृत्तकरणके अन्य सब परिणामोंकी अपेक्षा सबसे स्तोक विशुद्धिको लिये हुए होता है यह स्पष्ट ही है। पहले समयके दूसरे खण्डका ४० संख्याक जो जघन्य परिणाम है वही दूसरे समयके प्रथम खण्डका ४० संख्याक जघन्य परिणाम है, इसलिए यह प्रथम खण्डके १ संख्याक जघन्य परिणामसे अनन्तगुणी विशुद्धिको लिये हुए होता है। प्रथम समयके तीसरे खण्डका ८० संख्याक जो जघन्य परिणाम है वही तीसरे समयके प्रथम खण्डका ८० संख्याक जघन्य परिणाम है, इसलिये यह भी दूसरे समयके ४० संख्याक जघन्य परिणामसे अनन्तगुणी विशुद्धिको लिये हुए होता है। इसीप्रकार प्रथम समयके चौथे खण्डका १२१ संख्याक जो जघन्य परिणाम है वही चौथे समयके प्रथम खण्डका १२१ संख्याक जघन्य परिणाम है, इसलिए यह भी तीसरे समयके ८० संख्याक जघन्य परिणामसे अनन्तगुणी विशुद्धिको लिये हुए होता है । इसप्रकार अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयतक जघन्य विशुद्धिके अल्पबहुत्वका यह क्रम जानना चाहिए । अंक संदृष्टिकी अपेक्षा यह निर्वर्गणाकाण्डक चौथे समयमें समाप्त हुआ है, इसलिए चौथे समयसम्बन्धी प्रथम खण्डके १२१ संख्याक जघन्य परिणामतक उक्त अल्पबहुत्वका विचार किया गया है। आगे उक्त जघन्य परिणामसे प्रथम समयका उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा होता है, क्योंकि अंक संदष्टिकी अपेक्षा पहले जो अधःप्रवृत्तकरणके चतुर्थ समयके प्रथम खण्डकी जघन्य विशद्धि बतला आये हैं वही अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयके अन्तिम खण्डकी जघन्य विशुद्धि है, और यह उसी अन्तिम खण्डको उत्कृष्ट विशुद्धि है, इसलिए यह उससे अनन्तगुणी होती है । अंक संदृष्टिकी अपेक्षा वह जघन्य विशुद्धि प्रथम समयके अन्तिम खण्डके १२१ संख्याक परिणामकी थी और यह उसी खण्डके १६२ संख्याक परिणामकी है, इसलिये यह उससे अनन्तगणी बतलाई है । इस प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डकके प्रथम समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । अंक संदृष्टिकी अपेक्षा प्रथम समय सम्बन्धी अन्तिम खण्डके १६२ संख्याक परिणामकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे पाँचवें समय सम्बन्धी प्रथम खण्डके १६३ संख्याक परिणामकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है, क्योंकि प्रथम समयको उत्कृष्ट विशुद्धि द्वितीय समयसम्बन्धी द्विचरम खण्डके अन्तिम परिणामके सदृश होकर ऊर्वकपनेसे (अनन्तभागवृद्धिरूपसे) अवस्थित है और यह जघन्य विशद्धि दूसरे समयसम्बन्धी अन्तिम खण्डके अष्टांकरूप जघन्य परिणामरूपसे अवस्थित है, इसलिए यह उक्त उत्कृष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी है। इससे अधःप्रवृत्तकरणके द्वितोय समयसम्बन्धी अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है, क्योंकि पूर्वकी जघन्य विशुद्धि द्वितीय समयके अन्तिम खण्डकी जघन्य विशद्धिस्वरूप है, और यह उससे असंख्यात लोकप्रमाण षटस्थानोंको उल्लंघनकर स्थित हए दूसरे समयके अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट विद्धिस्वरूप है, इसलिये यह उससे अनन्तगुणी हो जाता है । अंक संदृष्टिको अपेक्षा द्वितीय समयके अन्तिम खण्डकी जघन्य विशुद्धि १६३ संख्याक जघन्य परिणामस्वरूप है और द्वितीय समयके अन्तिम खण्डको यह उत्कृष्ट विशुद्धि २०५ संख्याक परिणामस्वरूप है, इसलिए यह उससे अनन्तगुणी है। इसीप्रकार आगमानुसार आगे भी विचार कर लेना चाहिए । यहाँ उसे समझनेके लिए अंक संदृष्टि दी जाती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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