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________________ ३२ लब्धिसार कांडकका अंत समयसंबंधी प्रथम खंडका जघन्य परिणामते पहिले समयके अंत खंडका उत्कृष्ट परिणाम अनंतगुणा है । तातै द्वितीय कांडकके प्रथम समयके प्रथम खंडका जघन्य परिणाम अनंतगुणा है । तातै प्रथम कांडकका द्वितीय समयके अंत खंडका परिणाम अनंतगणा है। तातै द्वितीय कांडकके द्वितीय समयके प्रथम खंडका जघन्य परिणाम अनंतगणा है। औसैं जैसैं सर्प इधरतें उधर उधरतें इधर गमन करै है तैसे जघन्यतै उत्कृष्टका उत्कृष्टतै जघन्यका अनंतगणा क्रम है यावत् अंत कांडकका अंत समयके प्रथम खंडका जघन्य परिणाम होइ । बहुरि तातें अंत कांडकका प्रथम समयके अंत खंडका उत्कृष्ट परिणाम अनंतगुणा है । तातें समय समय प्रति अंत खंडके उत्कृष्ट परिणामनिकी पंक्ति अनंतगुणा क्रम लोएं है यावत् अंत कांडकका अंत समयके अंत खंडका उत्कृष्ट परिणाम होइ । इहाँ इतना जानना-जघन्यतै उत्कृष्ट है सो तौ असंख्यात लोकमात्रवार अनंतगुणा है । अर उत्कृष्टतै जघन्य है सो एकवार अनंतगुणा है। बहुरि सर्वतें जघन्य विशुद्धताके भी अविभाग प्रतिच्छेद जीव राशि” अनंतगुणे हैं, ताक् इहाँ षट्स्थान संभव हैं ।। ४८ ॥ विशेष-श्री जयधवला दर्शनमोह उपशमना अधिकारमें विशुद्धिसम्बन्धी अल्पबहुत्वका विचार करते हुए अल्पबहुत्वके स्वस्थान और परस्थान ऐसे दो भेद करके स्वस्थान अल्पबहुत्वका खुलासा इस प्रकार किया है। अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयमें प्रथम खण्डका जघन्य परिणाम सबसे स्तोक है। उससे वहींके दूसरे खण्डका जवन्य परिणाम अनन्तगुणा है । उसते वहींके तीसरे खण्डका जघन्य परिणाम अनन्तगुणा है । उससे वहींके चौथे खण्डका जघन्य परिणाम अनन है। इस प्रकार प्रथम समयके अन्तिम परिणाम खण्डके जघन्य परिणामके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । इसी प्रकार प्रथम समयके प्रथम खण्डका उत्कृष्ट परिणाम सबसे स्तोक है। उससे वहींके दूसरे खण्डका उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा है। उससे वहींके तीसरे खण्डका उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा है। उससे वहींके चौथे खण्डका उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा है । इसी प्रकार प्रथम समयके अन्तिम खण्डके अन्तिम उत्कृष्ट परिणामके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । इसा प्रकार द्वितीयादि समयोंके सब खण्डोंसम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट परिणामोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व घटित कर लेना चाहिए । यह स्वस्थान अल्पबहत्व है। अक संदष्टिके अनुसार प्रथम समयके चारों खण्डोंमें १६२ परिणाम पाये जाते हैं, उनमें से प्रथम खण्ड में एस्से लेकर उनतालोस तक ३९ परिणाम, दूसरे खण्डमें ४० से लेकर ७९ तक ४० परिणाम, तीसरे खण्डमें ८० से लेकर १२० तक ४१ परिणाम और चौथे खण्डमें १२१ से लेकर १६२ तक ४२ परिणाम परिगणित किये गये हैं। इनमें से प्रथम खण्डका १ संख्याक परिणाम विशुद्धिको अपेक्षा सबसे स्तोक है, उससे दूसरे खण्डका ४० संख्याक जघन्य परिणाम अनन्तगुणा है, उससे तीसरे खण्डका ८० संख्याक जघन्य परिणाम अनन्तगुणा है और उससे चौथे खण्डका १२१ वाँ जघन्य परिणाम अनन्तगुणा है । उत्कृष्टकी अपेक्षा प्रथम खण्डका ३९ संख्याक उत्कृष्ट परिणाम सबसे स्तोक है; उससे दूसरे खण्डका ७ उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा है, उससे तीसरे खण्डका १२० संख्याक उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा है और उससे चौथे खण्डका १६२ संख्याक उत्कृष्ट परिणाम अनन्तगुणा है । इसी प्रकार आगेके द्वितीयादि सब समयों में स्वस्थान अल्पबहुत्व जान लेना चाहिए। यह स्वस्थान अल्पबहुत्वका स्पष्टीकरण है । परस्थान अल्पबहुत्वकी अपेक्षा विचार इस प्रकार है-प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समय तक एकसे दूसरे और दूसरेसे तीसरे आदि समयोंमें जो जघन्य परिणाम प्राप्त होता है वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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