SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचक्षणः ।।7।। श्रीः ।। श्रीः ॥ श्रीः ।। लिखिता च पं०भानुप्रभगणिना ।। सर्व संख्यायां कवित्वानि 33॥ शुभम्भवतु संघस्य ।। (34) ॥8॥ जिनसेनगरिणश्चात्र चैत्येऽकार्षीद् बहूद्यमं । सूत्रभृच् शिव देवेन प्रशस्तिरुदकारि च ॥1॥ प्रासादे क्रियमाणेऽथ बहुविध्नो पशान्तये । विज्ञानं रचयामास जिनसेनो (35) महामुनिः ।।2। शुभम् No. 31 Shantinath temple Inscription of Jaiselmer (1) ॐ ।। स्वस्ति । श्रीपार्श्वनाथस्य जिनेश्वरस्य प्रसादत : सन्तु समीहितानि । श्रीशान्तिनाथस्य पदप्रसादाद्विघ्नानि नश्यन्तु भवेच्च शान्तिः ।। 1 ।। संवत् 1583 वर्षे मागसिर सुदि (3) 11 दिने श्री जेसलमेरु महादुर्गे राउल श्री चाचिगदेव पट्टे राउल श्री देवकण्ण - (4) पट्टे महाराजाधिराज राउल श्री जयतसिंह विर्जाय राज्ये कुमर श्री लुणकर्णयुव(5) राज्ये श्री ऊकेवंशे श्री संखवाल गोत्रे सं० आम्बा पुत्र सं० कोचर हुया। जिणइ कोरण्टइ नगरि अनइ संखवाली गामइ उत्तम तोरण जैन प्रसाद कराव्या । आबू जीराउलइ श्री संघिसु यात्रा कीधी। जिणइ अापणइ उदार गुणइ आपणा घरनउ सर्व धन लोकनां देई कोरण्टइ कर्ण 18) नामना लीधी। सं० कोचर पुत्र सं० मूला तत्पुत्र सं० रउला सं० हीरा । सं० रउला भार्या सं० माणिकदे (6) (7) 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001596
Book TitleJain Inscriptions of Rajasthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvallabh Somani
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages350
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Art, & History
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy