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________________ ईसिविप्रासं हसित्रं महुरं भरिणत्रं पलोइ ग मयं जस्स र दीगं रोसो थेप्रो थिरा गो जम्पित्रं ग हसि ण कथं ग पलोइअं ण सम्मरिअं । रण थि परिब्भमिश्रं जेरण जरणे कज्ज सुत्थादुत्थावि पया ग्रहमा तह उत्तिमा वि जर for जेण धरिश्रा णिच्चं णिश्रमण्डले सव्वा ॥19॥ उ रोसरात्र मच्छर लोहेहि मिरणाय वज्जियं जेा । रंग को दोव्ह विसेसो ववहारे को वि मरणयपि ॥10॥ दिरवरदीरणाज्जं जेण जरणं रज्जिऊरण सयलम्म | रिणम्मच्छरेण जणि दुहारण वि दण्डरिड्ढवणं ||11|| धरणरिद्धसमिद्धारण वि पउराणं रिंगप्रकरस्स अब्भहि । लक्खं सयं च सरिसत्तणं च तह जेण दिट्ठाई ||12|1 रणवजोवणरुप्रपसाहिएग सिंगारगुरणगरुक्केरण | जरणवयरिगज्जमलं जं जेरण जरणे णेय सच्चरि बालाण गुरुतरुणारण तह सही गयवयारण तरण इय सुचरिएहि णिच्चं जेरण जरो पालि सव्वो ||14|| जेण णमंतेरण सया सम्मारणं गुरणथुइं कुरणंतेण । जम्पैतेण य ललिश्रं दिण्णं परई धरणविहं ||15| व्व । सोमं । 2 मेत्ती || 7 | Jain Education International मरुमाडवल्लतमरणी-परिका अज्ज गुज्जरत्तासु । जणि जेण जगाणं सच्चरित्रगुणेहि मगुरा ||16|| गहिऊण गोहणा गिरिम्मि जालाउला पल्ली | जणि श्राश्र जेरण विसमे वडरणारणयमण्डले पयड ||17| गीलुप्पलदलगंधा रम्मा मायंदमहूप्रविदेहि । वरइक्खुपण्णछण्णा एसा भूमिकया | परिहीणं ॥ 8 ॥ सोक्खेण । 111811 वरिससएसु श्र गवसु अढारसमग्गलेसु चेत्तम्मि । णक्खत्त वि ऊ हत्थे बुहवारे धवलबीमा || 19 || सिरिकक्कुरण हट्ट महाजरगं विप्पसयइवरिणबहुलं । रोहिंसकप्रगामे णिवेसिश्रं कित्तिविद ||20|| मडोअरम्मि एक्को बीश्रो जेरण जसस्स वा पुज्जा एए थम्भा समुत्थविश्रा ॥21॥ For Private & Personal Use Only ||13|| रोहिंसक प्रगामम्मि | | www.jainelibrary.org
SR No.001596
Book TitleJain Inscriptions of Rajasthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamvallabh Somani
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages350
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Art, & History
File Size17 MB
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