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गुगाइजिणिदचरिय
तस्सगया कयाई पुरिसा चतारि गहियवरखग्गा । अत्थाइयाए पडिहार सूईया सविहमल्लीणा ॥३३१४।। विहिणा विहियपणामा उवविट्ठा दसियासणे सव्वे । रण्णा भणियं कत्तो के तुब्भे केण कज्जेण ॥३३१५।। भणियं च जेट्ठभाएण सुणसु नरनाह अम्ह वुसंत । विस्संभरनयरीए खेमंकराइणो पुत्ता ॥३३१६।। रणसूर-सूर-रणमहरणप्पह, भायरो सगा सब्वे। पिउणा रज्जे ठविया भयरज्जा एत्थ संपत्ता ॥३३१७।। रना भणियं गिण्हह रज्जाणि करेइ मज्झ पयसेवं । पडिभणियमणेहि तओ विन्नत्ति देव ! निसुणेहि ॥३३१८।। जइ सुपसण्णो देवो ता अम्हे अंगरक्खगे कूणउ । पडिवण्णमिमं रण्णा दिण्णो एक्केक्कगो गामो ॥३३१९।। तेहिं वि महापसाओ त्ति भणियपडिवण्णमेव निववयणं । रयणीए एक्केक्के पहरे रक्खंति रायतणू ॥३३२०।। एवं वच्चइ कालो रणसूरो नियपओयणवसेण। गामं पइ संचलिओ पत्तो य महाडवीमज्झे ॥३३२१।। एत्यंतरे पयंडो रयरेणुभरेण भरियगयणयलो । अंधारितो दिसिबहुमुहाइं उद्घाईओ पवणो ॥३३२२।। मग्गं मोत्तूण तओ रणसूरो रेणु रक्खणट्ठाए। वडविडविविवरमज्झे पविसित्तु ठिओ विगयचेट्ठो ॥३३२३।। एत्थंतरे सखेयं वडोवरि जोगिणीण संलावं । निसुणेइ अज्ज विहलो दिवसो अम्हाण वोलीणो ॥३३२४।। अण्णाए पडिभणियं मा खिज्जह खमह इत्तरं कालं । आसन्ना फलरिद्धी जइ अणुक्लो विही अम्ह ॥३३२५।। इयरहिं तओ भणियं कहं कहं कहसु विम्हओ अम्ह । सा भणइ सणियसणियं सा संका सुणह जइ एवं ॥३३२६।। नरसेहरस्स रण्णो रयणीए अज्ज पढमपहरम्मि। संभाविज्जइ मरणं भुयंगमाओ मई मज्झ ॥३३२७।। तस्सणुराएण पुरो अंतेउरवेल इत्तपमुहजणो। नियजीवियनिरवेक्खो मरिही निस्संसयं चेव ॥३३२८।। एयं सोऊण लहु रणसूरो वलियनियघरे पत्तो। सुत्तो निब्भरनिदाए जाव अत्थंगओ सूरो ॥३३२९।। सेवासमए चलिओ खग्गं घित्तूण रायपासम्मि । थक्को दीवंतरिओ निप्पंदो' दिनदिट्ठीओ ॥३३३०।। एत्यंतरम्मि सहसा चलिओ चंदोवगो नरिंदस्स । रणसूरेण वि दिट्ठो वियाण विवरंतरे धूमो ॥३३३१।। तत्तो पलंबमाणं कयंतमुहकुहरदारूणं दिट्ठ । सप्पस्स मुहं फुकारभरियभुवणोयर भीमं ॥३३३२।। दक्खत्तणेण गिण्डियसप्पमुहं तेण वामहत्थेण । दाहिणकरेण छिदिय खित्तं रणो करंडम्मि ॥३३३३।। खंडाखंडि काउं सो उरगो तेण तम्मि पक्खित्तो। निवभोगंगकरंडे कयकज्जो जाव उविट्ठो ॥३३३४।। ता देवीए देहे कररुहसरसवणसन्निहाणम्मि। पेच्छइ य रत्तबिंदू छिज्जतभुयंगमावडियं ॥३३३५।। जइ कह वि दिव्वजोगा रत्तरत्तेण संगयं होज्जा । ता नूणमवाएणं होयव्वं देवदेवीए ॥३३३६।। एयं विचिंतिऊणं रणसूरेणं करेण सो फुसिओ। भवियब्वया नियोगा रण्णासुत्तेण सच्चविओ ॥३३३७।। पुन्नो पहरो सूरो समागओ जंपियं च नरवइणा। को एत्थ जामइल्लो सूरेण पयंपियं अहयं ॥३३३८।। रण्णा भणियं तुरियं रणसूरसिरं गहाय आगच्छ। सो भणइ किं निमित्तं आह पहू ! किं वियारेण? ॥३३३९।। सूरो भणइ न सक्का रणसूरसिरस्स छेयण काउं । जं सो सहस्सजोही पयंडभूयदंडकलियो य ॥३३४०।। किं वा वियारिऊण सहसच्चिय जे कुणंति कज्जाई । पच्छा विहु ताण सुहं पच्छायावेण न हु होइ ॥३३४१।। निसुणेसु नराहिव ! सावहाणहियओ कहाणयं एगं । विझगिरिपायमूले अत्थित्थ महाडवी एगा ॥३३४२।। लिंबंब-जंबु-जंबीर-साल-अंकोल्ल-सग्गमोक्खिल्ला । सल्लइ-दीहपलासा पलंबधवधम्मणाइण्णा ॥३३४३।।
१. निप्फण्णो पा० ।
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