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________________ सिरिरिसहसामिदेसणा २५३ ते बिति सुणसु सावय! आयरिया भुवणभाणु नामेण। एत्थ पुरे संपत्ता अहाविहारेण विहरंता ॥२९६५।। ताणाएसेणम्हे घरारि वसहिमग्गणं करिमो। को एत्थ वसहिदाया कहसु णे जइ वियाणाहि ॥२९६६।। तो भणइ विमलसालो विसालसालाओ संति मह गेहे। जा भे रोयइ संजमगुणावहा तीए संकमह ॥२९६७॥ पडिलेहिऊण वसहि साहू साहंति भुवणभाणूणं। आगंतूण गुरू वि य मेरावट्टावणं कुणइ ॥२९६८।। वसहिफलं स.हेंतो धम्मकहं कहइ विमलसालस्स। संवेगबहुलयाए जहागमं जणियसंवेगं ॥२९६९।। जायाण जीवलोए नराण संपत्तमणुयजम्माण। एस गुणो जं किज्जइ जीवदयालंकिओ धम्मो ॥२९७०॥ धम्मो च्चिय दुग्गइमज्जमाणमाणवसमुद्धरणधीरो। इह परलोयसमीहियसंपाडणकप्परुक्खसमो ॥२९७१।। सेसं पुण खणभंगुरमसारसंसारकारणं सव्वं। पिय-पुत्तमित्त-धण-धण्णमाइयं निच्छयनएणं ॥२९७२।। चउगइदुहनिद्दलणं संसारसमुद्दतारणतरंडं। वसहीपयाण पुण्णं कहेंति संखेवओ गुरवो ॥२९७३।। वत्थ-पहिग्गह-कंबल-ओसह-भेसज्ज-असण'माईणं । दाणाण परमदाणं वसहीदाणं सुविहियाणं ॥२९७४।। जं तत्थ ठियाण भवे अन्नेहितो वि वत्थ-पत्ताई। तं सव्वं पि हु सेज्जायरेण परमत्थओ दिण्णं ॥२९७५।। पंचमहव्वयदुद्धरधुरधरणसमुद्धराण धीराण। मुणिवसहाणं वसहि देतेण इमं च होइ कयं ॥२९७६।। चरणगुणपक्खवाओ बहुमाणो नाण-दसणगुणेसु । अथिराण थिरीकरणं जसवुड्ढी तित्थवुढि य ॥२९७७ । निरवज्जं पव्वज्जं विरयाविरई तहेव सम्मत्तं । पंचुंबराई विरई नियम वा जं पवज्जति ॥२९७८।। सुत्तत्थथिरीकरणं विविहतव-चरण-संजमुच्छाहं। विणओ वेयावच्चं कुणंति जं साहुणो तत्थ ॥२९७९।। वसहीदायाछिप्पइ तेण सुहंसेण सुद्धपरिणामो। परिणामवसेण जओ सव्वं चिय बहुफलं होइ ॥२९८०॥ अदाए पडिबिंबं च परिकयं जेण संकमइ पुन्नं। आलयदाणं दाणाण तेण गरुयं विणिद्दिळें ॥२९८१।। साहूण वसहिदाया कल्लाणपरंपरं पभोत्तूण। घणघाइकम्ममुक्को मुत्तिसुहं तं पि पाउणइ ॥२९८२।। सोऊण सूरिवयणं विसुद्धसद्धाए विमलसालेण। गहिओ निम्मलनियमो साहूण वसहिदाणं मए देयं ॥२९८३।। गुरुणा भणियं धन्नो पुन्नो कयलक्खणो तुमं भद्दा। एवंविहपरिणामो न होइ गुरुकम्मजीवाण ॥२९८४॥ काऊण मासकप्पं आपुच्छियविमलसालसत्थाहं। भाणु व्व भवियकमले बोहिता वयणकिरणेहिं ॥२९८५।। अण्णत्थ विहरिया भुवणभाणुणो सूरिणो सपरिवारा। सेज्जायरो वि जह गहियनियमपरिपालणासत्तो ॥२९८६॥ साहूण वसहिदाय त्ति पुन्नवंतो त्ति पत्तभूओ त्ति। विमलजसपडहपडिरव-परिपूरियसयलमहिवलओ ॥२९८७।। मइसारसुयसमप्पियघरसारो विमलसालसत्थाहो। मरिऊण मरणविहिणा मुणिजणवसही पयाणेण ॥२९८८।। पंचप्पयारमणिकिरण-नियर-निट्ठविय-तिमिरपन्भारे। वरमुत्ताहलमणहरजालोलि. जणियमणतोसे ॥२९८९।। मणिचितियसंपज्जतसयलसद्दाइविसयसंदोहे। सव्वुत्तमे विमाणे सणंकुमारे सुरो जाओ ॥२९९०।। लायण्णपुण्णदेहो बंदियणुग्घुट्ठजयजयारावो। सुरसुंदरीहिं सहिओ सुरसोक्खं तत्थ भोत्तूण ॥२९९१।। तत्तो चुओ समाणो महाविदेहम्मि वीयसोगाए। नयरीए नरवद्धणरायसुओ सो समुप्पण्णो ॥२९९२।। नरवद्धणस्स पुत्तो नरकंता कुच्छिसंभवो जेण। नरसुंदरो त्ति नाम तेण कयं तस्स समयम्मि ॥२९९३।। नीसेसकलाकुसलो निरुवमविलसंतजोव्वणारंभो। वररायकण्णगाणं पाणी गाहाविओ पिउणा ॥२९९४।। १. ज्ज सयण पा० । २. जालावलि ज. पा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001593
Book TitleJugaijinandachariyam
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size8 MB
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