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प्रस्तावना
प्रति परिचय-
युगादिजिनदेव चरित्र की दो प्रतियाँ उपलब्ध हुई है एक जैसलमेर दुर्गस्थ ख० ग० यु० प्र० आ० श्री जिनभद्र सूरि संस्थापित ताडपत्रीय जैन ग्रन्थ भण्डार की ताड पत्र पर लिखी हुई जिसे मैंने प्रस्तुत सम्पादन में जे० संज्ञा दी है, और दूसरी प्रति जो कागज पर लिखी हुई है यह पाटण स्थित संघवी पाडा ज्ञान भण्डार के संग्रह की है । जिसे हमने पा० संज्ञा दी है।
जे० संज्ञक प्रति
श्री जैसलमेर दुर्गस्थ ख० ग० यु० प्र० आ० श्री जिनभद्रसूरि संस्थापित ताडपत्रीय जैनज्ञान भण्डार के सूची पत्र में प्रस्तुत प्रति का क्रमांक २५० है । पत्र संख्या ३६३ है । स्थिति और लिपि सुन्दर है। इसकी लम्बाई ३३ और चौड़ाई २,५ सेन्टी मीटर है। प्रति के अन्त में लिखानेवाले की प्रशस्ति है । वि. सं. १३३९ में आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा रविवार के दिन महाराजाधिराज श्रीमद् सारङ्गदेव के राज्य में तथा महामात्य श्री कान्ह के कार्यकाल में चरुत्तर जिले के बदरसिद्धि ( बोरसद) में प्राग्वाट ज्ञातीय ठक्कर हीराक ने युगादिदेव चरित्र लिखवाया तथा नवलक्ष ( नवलखा ) कुल के श्रेष्ठी जावड श्रावक ने अपने निजी द्रव्य से इस चरित्र की प्रति को खरीद कर खत्तरतर गच्छ को दिया ।
ग्रन्थ को लिखाने वाले की प्रशस्ति इस प्रकार है-
संवत १३३९ वर्षे लौकिक आषाढ़ सुदी प्रतिपहिने रवौ पुष्य नक्षत्रे दिक्कूलङकष कीर्तिकल्लोलिनी जलधि श्री महाराजाधिराज श्रीमद् सारङ्गदेवकल्याणविजयराज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि महामात्य श्री कान्हे समस्त श्री श्री करणव्यापारात् परिपन्थयति सति चतुरोत्तरमंडलकरण मध्यस्थित वदरसिद्धिस्थानस्थितेन श्री प्राग्वाटज्ञातीय ठ० हीराकेन वृहद् श्री युगादिदेवचरित पुस्तकं लिखितमिति । छ । श्रीः
पट्टिका के ऊपर इस प्रकार लिखा है-
श्री आदिनाथदेवप्राकृतचरित्र पुस्तकं नवलक्ष कुलोद्भवेन सा० जावडसुश्रावकेण द्रव्येण गृहित्वा श्री खरतर - गच्छे प्रदत्तम् । नवाङ्गीवृत्तिकारक श्री अभयदेवसूरिशिष्यैः श्री वर्द्धमानसूरिभिः कृतः ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में इस जे० संज्ञक प्रति को प्राधान्य दिया गया है । पा० संज्ञक प्रति-
यह प्रति वि.सं. १४७४ में लिखी गई है। इसकी लम्बाई चौड़ाई १५ x २ सेन्टीमीटर है और जिसका नम्बर २८५ है । स्थिति श्रेष्ठ है । प्रस्तुत सम्पादन में यह प्रति बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई । जे० प्रति के सैकड़ों अशुद्ध पाठों को शुद्ध करने में इस प्रति के कई उपयोगी एवं शुद्ध पाठ मिले हैं। शुद्ध पाठ को मूल में ही रखा है और जे० प्रति के उन पाठों को पाठान्तर में रखा है । पा० प्रति के पाठ जहाँ नये लगे हैं उन्हें पाठान्तर में टिप्पण में रख दिये हैं ।
प्रस्तुत जे० प्रति की प्रतिलिपि आगम प्रभाकर महासन्त पू० स्व० पुण्यविजयजी महाराज श्री ने केवलचन्द शाह से करवाई थी इसी प्रतिलिपि वाली कोपी से मैंने युगादिदेव चरित्र का सम्पादन एवं
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श्री नगीन भाई संशोधन किया ।
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