________________
काव्यकल्पलतावृत्तिः
गन्तु गीता आगन्ता गाति; नट नटन; वाल बाल अबला बला लव अलवत् अलावीत् ; वला वूल वली आवलि आलम्ब; वेत्ता वित्त वृत्ति; योगि याग योग गेय गाय अगायत् अगायि; पान पीन आपान अपान आपीन पुनः; ताल लता ताली तालु उत्ताल तल तूल तैल लता तुलित तुला अतुल लाति लातु; पल विल एल वलि वल बल अलीलवत् अलूलवत्; वात वृत्त निवृत्त तावत् एतावता वृत्तान्त वृन्त वेता वाता; धन धेनु निधि निधान इन्धन; उग्र गौर गौरी; रङग राग रोग; अग्र गुरु गार गिरि गिरा; रङगत् रङग उरग अङिगरस् अगार अङगार रोगी रागी आग: अगिरत् अग्रे; मृड मङगल मुण्ड मण्ड मौलि माल ललना मल्ल मल्ली अम्ल लोम अमल; मिमील अमिलत्; शिव शिवा शौव विश्व विश विशा आवेश वश वशा वशी अविशत् विवेश; शौत्र आर्या आर्य अर्य राय ईर्या अरयः ऐयरुः; दिति अदिति; उदन्त दन्त दन्ति दान्त दुत तदा तुन्द; ददि आददति दूत दूति उदात्त दत्त उदेति उदित; ददातु ददाति ददत्ते दत्ते तुदति तुदतु; हव हाव बाहु बाहवि बहु बहिः; वाहा हाव विवाह आह्व आहाव अवहत् उवाह; हविः बह वी वही; ऊहा: शनि निशा अशनिः; ईशान शनैः नाश अनिश शुना शूनः नाश ननाश; कवि कम्बु बक कम्बी अम्बिका; मन्द आमोद मुदा मोद मिमिदे दम मादाः; सायम्, सायम सोऽयम् असूया आय अयसा यस्या अयास्यन; दोषा दोष; जीव बीज वाजि जव अजीवत् अजीजवत् जिजीव; आयाम यम याम, मयु मय अमेय आमय, माया; कुह कुह; माघ मेघ मोघ मघा; शिविर शरत् शौरि शूर शशि शर; सहस् सहसा सेहा हास हंस सोऽहम् सिंह साहस सेह असह; गगन गान नाग नग अनङग; काश आकाश ; कौशिक कुशिक केश कुश; अङकुश शशक शकम् शुक कोश अशोक शङका शूक; अनन्त, नृत्त नीति नत नति, तेन ततान, तेने आनीत, तनु तन, नूतन नुन्न, नेता नुति; अश्र भर भार भीरू भूरि भरो; रम्भा आरम्भ; वियत् वयस्, वायु, यव वायु युव घन घनाघन; कुकुल ककुभ कुम्भ भेक कुम्भी; अपाचि चम्पा चम्प; अपर्चत् अपीपचत्, चाप चम्पू; पर पार पुरपुर पौर, अपर अपार अरोप पुरी; उदीची उदञ्चत्; जम्भ; अभजत् अभजि अभाजि, भेजे भाज अम्भोज भोज भज; पवि वापी, अवपत् अपीपवत् उवाप पीवा; अतिभी भूत भीति भित्ति भीता, भाषा अभाषि वचस् वाचा वचा वञ्च, अवोचत् उवाच, वीचि वञ्चु वाच; अगमत् गम आगम मागाः; छन्दः आच्छाद उच्छेद अच्छिदत्; धातुः धाता धौत आधौत, अधीते अधीत अधत्त धत्ते धत्तः; कंस सेक कसा, अकसत अकासि; अङगज गज जगौ; काम मूक मोक; किमु कामिन् कामुकवाणी वीणा वणिक् वेणी; बाण; सती सीता सूत सुत, सित असित आसित, सन्ति; सन्तु सतत सन्तत, सेतु सोता सात; मेना मेनाक मनाक् मान मुनि मौन; नेमी नमि, नौमि नुमः, नामन; मेने मीन मनस् मानिन्; जय जाया, जय जेय, अजयत् जीयात्; यज युयोज; सेना सेनानी; सूना; आसन्न आसीन आसन नासा; गुहा गुह हिङगु गृह, अगृह अगाहि; चण्डी चण्ड, उच्चण्ड चौड; चल अञ्चल अचल, चेल चोल, चञ्चल, चलाचल, चाचलि चूला, चुल्ला चुल्ली, चञ्चा; अलोच अचलत् अचालीत् चचाल ; भङगी भङग; भोग भग भाग भङग भागी, भोगी; जड; जाल लाजा; एवमन्येऽपि ज्ञेयाः ।
स्थानमुरः कण्ठादि, तच्चित्रम् । यथा-- नेताऽनन्तनतोऽनन्तः सोऽद्यालासीदिलातले । धुतासिदासितोत्तालदनुसूनुर्नुतः सदा ।।
(इति) दन्त्यस्थानम् । प्राज्यसत्त्वोजितस्फूर्तिवर्यो मर्यादयान्वितः । समुद्रवदमुद्रश्रीः सज्जो जयति सज्जनः ।। अकण्ठ्यः । एवमन्यत् । एते शब्दा: सुप्राप्यत्वान्न दशिताः ।।
१. पाठ एषः मकरन्दानुसारी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org