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सिरिजिणेसरसूरिविरइओ चावाण नवरि एक्काण सहइ चारुत्तणम्मि टंकारो । सहलो मग्गणनिवहो विसज्जिओ जेण नमिऊण ॥१३१॥ दितो जलं पि जलओ स वल्लहो होइ सयललोयाणं । निच्चं पसारियकरो करेइ मित्तो वि संतावं ॥१३२।। दिति फलाई जहिच्छ कप्पदुमा, नेय किपि जपंति । धूमलियजलहरा पाणियं पि दाऊण गज्जति ॥१३३॥ लहइ गरुयत्तणं चिय दिताण करो विमुक्कदाणो वि। अच्छरियं लहुयायइ सुवण्णभरिओ वि लिताणं ॥१३४॥ न वि तह दृमेइ मणं गयस्स बंधो व्व करिणिविरहो व्य । दाणविओयविमुहिए जह भमरउले भमंतम्मि ॥१३५॥ जो सहइ समरमज्झे मुणाललीलाए पहरणसयाई । नूणं दाणावसरे तस्स वि हिययं चमक्केइ ॥१३६॥
१६. अथ कुस्वामिप्रक्रमः जडसंसग्गुल्लसिओ विलसंतो विरसवाणिओ निच्चं । पयडियबहुविहदोसो किं जलही ? न हि, कुसामी वि ॥१३७॥ पलए महागुणाणां हवंति सेवारिहा लहुगुणा वि । अत्थमिए दिणनाहे अहिलसइ जणो पईवं पि ॥१३८॥ ओलग्गिओऽसि धम्मऽम्ह होज्ज इण्हि नहिंद ! वच्चामो । आलिहियकुंजरस्स व तुह दाणं केण वि न दिढे ॥१३९॥ जे केइ पहू महिमंडलम्मि ते उच्छुदंडसारिच्छा । सरसा जडाण मज्झे विसमा पत्तेसु दीसंति ॥१४॥ इण्हिपहुणो पहुणो पहुत्तणं, किं चिरंतणपहूणं ? । दोसगुणा गुणादोसा ए(?जे)हिं कया, न हु कया तेहिं ॥१४॥ अप्पायत्तं संपयमवणेइ पह परम्मुहो, न गुणं । ठाणं उवरि निरंभइ मणीण जलही, न उण छायं ॥१४२॥ तोसो मणस्स कस्स वि आवइपडियम्मि भिच्चवग्गम्मि । सरियासु दरिदासं सरियाहिवई समुल्लसइ ॥१४३॥
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