SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ 246. भज निराकुलमनारतोत्सवान् 167.15 247. भूयः स्वच्छतामवगच्छम् 174.26. 248. भृत्यतां नीतः 167.30. 249. मत्परोक्षे एष गृहे न स्थास्यति 114.16. 20. मम गुरुस्नेहोऽपि गुरुजनो जनः संजातः 160.8. 251. मया प्रवासनीयाः प्राणा: 170.21. 252. मरणमपि पापकारिण्या न संपद्यते 197.13. 253. मर्तुमपि हताशा न शक्नोमि 194.19. 254. मा...मे निघ्नतां व्रज 223.13ff. 255. मा विधेहि तावदन्यं व्याक्षेपम् 190.1. 256. मा विधेहि द्विधाभावम् 167.7-8 257. मिथुनस्य विघटनं कृतम् 65.19. 258. मीलितेक्षणः...जगाम पर्यस्तविग्रहस्तिर्यगुत्संगम् 110.19. 259. मुक्तकण्ठमतिचिरं प्रारोदीत् 245.27 260. मुग्धो वराक: 166.3. 261. मूल्यमुद्घयद्भिः 69.4. 262. मोचयित्वात्मानम्...आगन्तव्यम् 99.18ff. 263. यदि परम् 159.21. 264. यदि परिमिदानी पक्षविक्षेपेण देवतायतनानि लंघयसि 224.6. 265. यद्यत्रापि शैथिल्यं कोऽन्यः प्रक्रमो भविष्यति 188.24. 266. यादशोऽहं तादगहमेव नान्यः 223.24. 267. यापितेन निर्दयं दारुभवनेनोह्यमानो 223.2. 268. यूनः प्रेषितः 64.7. 269. रक्षणीयः क्षुद्रलोकोपद्रव: 241.10. 270. रणितमुच्चचार 108.10ff. 271. राजसूनोः साधयितुमनपायमस्तित्वम् 112.22ff. 272. लघिमानमाश्रित्य शरणार्थमालोकयसि किमलीकमेवाशाः 224.6ff. 273. लब्धचैतन्यां तामकार्षीत् 230.6. 274. लेखमक्षिपत् 187.25ff. 275. वस्तुमिच्छति किमप्ययं भृत्यपरमाणुः 166.7. 276. वञ्चयित्वा मच्चक्षुः 222.1. 277. वन्दस्व तिलकविधिना 168.19. 278. वध से...वरागमनोत्सवेन 249.12ff. 279. वल्कलानि...तव तनौ समारोपितानि 198.29. 280. वस्तु च व्यक्तीकुरु वचनवृत्या यदानेतव्यम 100.1ff. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001574
Book TitleTilakmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanpal Mahakavi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy