________________
Appendix-D
175. देहं वर्तयन्ती 202.2. 176. द्वारदेशमशून्यं विधाय 94.20. 177. धिन्वन्ती मंगलगीतिभिर्जगज्जगी जनता 154.24. 178. न कश्चिदप्यत्र परः 59.22. 179. न किंचित्कृतेनाकालगमनेन 208 2. 180. न किञ्चिदादिष्टेनान्येन 107.14ff. 181. न कृता प्रतिनिवृत्तिः 130.15. 182. न च जनिता...चित्तनिर्वृतिः 130.15ff. 183. न चिरादपि प्राक्तनी प्रकृतिमापादयिष्यसि विनाऽस्मत्स्वामिनीप्रसादम् 224.7ff. 184. न जाने सा वराकी गता कामवस्थाम् 187.5ff. 185. न तावन्मया गन्तव्यं न यावदार्या समागता 214.5. 186. न स्वामितःप्रभृति दुःखे स्थापयिष्यामि 196.23ff. 187. न मे निसर्गदुर्विदग्धं श्रद्धति दग्धहृदयम् 160.31. 188. न पारितो निवर्तयितुम् 107. 10ff. 189. न मनागपि खेदमवहम् 164.24. 190. न मे गृहं स्पृह्यत्यद्य सिंहलद्वीपाय 59.17. 191. न शक्यते किमपि तेऽन्यथा कर्तुम् 214.6. 192. न हि सा मम भाग्यसंपन्मम ययाऽस्य.... अभिमतमर्थ साधयामि 164.13. 193. नावमागस्ती गतिं ग्राहयसि 85.6. 194. नास्त्यगोचरः पुराकृतकर्मणाम् 202. 12ff. 195. निरवलम्बनमात्मानममुच्चम् 148. 20. 196. निरस्तदाक्षियमितराभिवातिरूक्षरक्षरमामवादीत 1962. 197. निरामयशरीरा संप्रत्येव मुक्ता मया 159.17. 198. निराशीकृतोऽसि दुष्कृतिकृतान्तेन 224.6ff. 199. निरुद्धश्च निर्बन्धेन 227.9. 200. निषादितां प्रतिपद्य 61.18. 201. निषिद्धोऽपि जाल्मः प्रस्थितोऽयं जालिकः 165.18. 202. पतिष्यसि...कस्यापि...शिरसि 166.32ff 203. परं विस्मयमगच्छत् 58. 12. 204. परां मुदमधत्त 37. 2. 205. परां मुदमुवाह 12, 11 ff 206. पराहतमिव प्रेमवद्भिः 237. 17ff. 207. पर्यकमजुषम् 228. 28. 208. पर्याप्तममुना संभ्रमेण 247.13. 209. पश्चिमो न भवामि 34. 14. 210. (वत्रायुधस1) पाणिप्रगयितां त्वया नेतन्य: 37, 10.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org