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________________ प्रस्तावना ३१ १०. अष्टसहस्रोको प्रशस्तिमें विद्यानन्दिने कुमारसेनका उल्लेख किया है। कुमारसेन ई० ७८३ के विद्वान हैं, अतः विद्यानन्दि उसके बादके हैं। ११. तत्त्वार्थश्लोकवातिकको प्रशस्तिमें निम्न पद्य आया है "जीयात्सज्जनताऽऽश्रयः शिव-सुधाधारावधानप्रभुः, ध्वस्तध्वान्तततिः समुन्नतगतिस्तीव्रप्रतापान्वितः । प्रोजज्योतिरिवावगाहनकृतानन्तस्थितिर्मानतः, सन्मार्गस्त्रितयात्मकोऽखिलमलप्रज्वालनप्रक्षमः ॥" प्रस्तुत पद्यमें विद्यानन्दिने श्लेषसे शिवमार्ग-मोक्षमार्ग तथा शिवमार द्वितीयका यशोगान किया है। शिवमार द्वितीय गंगवंशो श्रीपुरुष नरेशका उत्तराधिकारी तथा उसका पुत्र था जो ई० ८१०के लगभग राज्यका अधिकारो हुआ। इसने श्रवणबेलगोलाको छोटी पहाडीपर एक बसदि बनवायी थी, जिसका नाम 'शिवमारन बसदि' था । चन्द्र नाथ स्वामी बसदिके निकट एक चट्टानपर कनडी भाषामें 'शिवमारन बसदि' यह अभिलेख अंकित है।' इस अभिलेखका समय भाषालिपिज्ञानको दृष्टिसे लगभग ८१० माना जाता है। शिवमारने कुम्मडवाडमें भी एक बसदि बनवायो थी। इन प्रसंगोंसे ज्ञात होता है कि शिवमार द्वितीय अपने पिता श्रीपुरुषको ही तरह जैनधर्मका उत्कट समर्थक एवं प्रभावक था। विद्यानन्दिने श्लोकवातिकको रचना इसी कालमें की होगी। १२. इस शिवमारका भतीजा और विजयादित्यका लड़का राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम शिवमारके राज्यका उत्तराधिकारी हआ तथा ई० सन् ८१६ के आसपास राजगहीपर बैठा। विद्यानन्दिने अपने अन्य ग्रन्थों में इसका भी उल्लेख किया है [क ] "स्थेयाज्जातजयध्वजाप्रतिनिधिः प्रोद्भूतभूरिप्रभुः, प्रध्वस्ताखिल-दुर्नय-द्विषदिमिः सन्नीतिसामर्थ्यतः । सन्मार्गस्त्रिविधः कुमार्गमथनोऽर्हन् वीरनाथः श्रिये, शश्वत्संस्तुतिगोचरोऽनघधियां श्रीसत्यवाक्याधिपः ॥ [ख] "प्रोक्तं युक्त्यनुशासनं विजयिभिः स्याद्वादमार्गानुगै विद्यानन्दबुधैरलङ्कृतमिदं श्रीसत्यवाक्याधिपः ॥"" [ग] "जयन्ति निर्जिताशेषसर्वथैकान्तनीतयः। सत्यवाक्याधिपाः शश्वविद्यानन्दाः जिनेश्वराः ॥ [ ] "विद्यानन्दैः स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिद्धयै।७ उक्त प्रमाणोंके आधारपर विद्यानन्दिका समय ई० ७७५ से ८४० प्रमाणित होता है । १. शिलालेख : सं० २५६ । २. मिडियावल जैनिज्म : पृ. २४,२५ । ३. राइस-मेसूर और कुर्ग : पृ० ४१ । ४. युक्त्यनुशासनालंकारप्रशस्ति । ५. वही। ६. प्रमाणपरीक्षा मंगलाचरण । ७. आप्तपरीक्षा : श्लो० १२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001567
Book TitleSatyashasana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages164
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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