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________________ ३० सत्यशासन-परीक्षा आप्तपरीक्षाको प्रस्तावनामें पं० दरबारीलालजी कोठिया, न्यायाचार्यने इस तरहसे सुन्दर विचार किया है, उसीका सार नीचे प्रस्तुत किया जाता हैपूर्वावधि १. न्यायसूत्रपर लिखे गये वात्स्यायन ( ई० ३-४ शती ) के न्यायभाष्य और न्यायसूत्र तथा न्यायभाष्यपर रचे गये उद्योतकरके न्यायवार्तिकका तत्त्वार्थश्लोकवातिक (प. २०५, २०६, २८३, ३०९) में नामोल्लेखपूर्वक तथा बिना नामके सविस्तर समालोचन किया है । उद्योतकरका समय ६०० ई० माना जाता है, इसलिए विद्यानन्दि ६०० ई० के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते।। २. विद्यानन्दिने जैमिनि, शवर, कुमारिलभट्ट और प्रभाकरके सिद्धान्तोंका अपने ग्रन्थोंमें खण्डन किया है। कुमारिल तथा प्रभाकरका समय ईसाकी सातवीं शताब्दी (ई० ६२५ से ६८०) है। अतः विद्यानन्दि ६८० ई० के पश्चाद्वर्ती है। ३. विद्यानन्दिने कणादके वैशेषिक सूत्र तथा उसपर लिखे गये प्रशस्तपादभाष्य तथा प्रशस्तपादभाष्यपर रची गयी व्योमशिवाचार्यको टीकाका आप्तपरीक्षा (पृ० २४, २५, १०६, १०७, १४९ ) में खण्डन किया है । व्योमशिवाचार्यका समय ई० सातवीं शतीका उत्तरार्ध ( ६५० से ७०० ई० ) माना जाता है, अतः विद्यानन्दि ७०० ई० के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते ।। ४. धर्मकीति और उनके अनुगामी प्रज्ञाकर तथा धर्मोत्तरका अष्टसहस्री (१०८१,१२२,२७८), प्रमाणपरीक्षा (५० ५३ ) में खण्डन किया है । धर्मोत्तरका समय ई० ७२५ माना जाता है, अतः विद्यानन्दि ७२५ ई० के पश्चाद्वर्ती हैं । ५. अष्टसहस्री ( पृ० १८ ) में मण्डनमिश्रका नामोल्लेखपूर्वक तथा श्लोकवातिक ( पृ० ९४ ) और सत्यशासन-परीक्षा (पुरुषा० ६ १९) में उनकी ब्रह्मसिद्धि की 'आहुविधातृप्रत्यक्षम्' कारिकाको उद्धृत किया है। शंकराचार्य के प्रधान शिष्य सूरेश्वरके बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवात्तिक (३-५) से अष्टसहस्री (पृ० ९३, १६१) में पद्य उद्धृत किये हैं । मण्डनमिश्र का समय ई० ६७० से ७२० तक और सूरेश्वरका समय ई० ७८८ से ८२० तक समझा जाता है। विद्यानन्दिके ग्रन्थोंमें सुरेश्वरसे उत्तरवर्ती किसी भी ग्रन्थ या ग्रंथकारका उल्लेख नहीं है। अतएव ८२०ई०विद्यानन्दिको पर्वावधि मानना चाहिए । उत्तरावधि ६. वादिदेवसूरिने अपने पार्श्वनाथचरित ( श्लो० २८) और न्यायविनिश्चयविवरण ( प्रशस्ति २) में आचार्य विद्यानन्दिकी स्तुति की है । वादिदेवका समय ई० सन् १०२५ सुनिश्चित है, अतः विद्यानन्दि १०२५ ई० के पूर्ववर्ती हैं । ७. प्रशस्तपादभाष्यपर चार टीकाएँ हैं जिनमें से विद्यानन्दिने केवल प्रथमका खण्डन किया है अन्यका नहीं । चौथो टीका लक्षणावली उदयनने सन ९८४ में बनायो, अत: विद्यानन्दि इसके पूर्ववर्ती हैं। ८. उद्योतकरके न्यायवार्तिकपर वाचस्पति मिश्र की तात्पर्यटीका है। विद्यानन्दिने उद्योतकरका तो खण्डन किया, किन्तु वाचस्पति मिश्रका नहीं। वाचस्पतिका समय ई०.४१ है। अत: विद्यानन्दि उसके पूर्ववर्ती है। इस तरह अन्तरंग परोक्षण-द्वारा विद्यानन्दिका समय ई० ७७५ से ८४० तक निश्चित होता है। इस समयको पुष्टिमें और प्रमाण भी विद्यमान है ९. विद्यानन्दि अकलंकके सर्वप्रथम टीकाकार हैं। अकलंकका समय न्यायाचार्य पं. महेन्द्र कुमारजीने विशेष ऊहापोहके बाद ई० ७२०-७८० निश्चित किया है, अतः विद्यानन्दि इसके उत्तरवर्ती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001567
Book TitleSatyashasana Pariksha
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages164
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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