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.. प्रस्तावना
१. "प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगमः ।"
[ न्यायसू० ११११] यह सूत्र नैयायिकशासनके पूर्वपक्ष में नैयायिकाभिमत सामग्रीको प्रस्तुत करनेके ध्येयसे उद्धृत किया गया है। २. "दुःखजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानानामुत्तरोत्तरापाये तदन्तराभावादपवर्गः ।''
[ न्यायसू० १।१।२] यह सूत्र वैशेषिकाभिमत मोक्षके स्वरूपका प्रतिपादन करते हुए वैशेषिकशासनके पूर्वपक्षमें उद्धृत किया गया है।
___३. “युगपज्ज्ञानानुत्पत्तिर्मनसो लिङ्गम् ।" [न्यायसू० १।१।१६ ] . यह सूत्र वैशेषिक दर्शनके समवाय सिद्धान्तका निरसन करने के प्रसंगमें उद्धृत किया गया है।
४. “यत्सिद्धावन्यप्रकरणसिद्धिः सोऽधिकरणसिद्धान्तः ।" [ न्यायसू० १।१।३० ] यह सूत्र वैशेषिकशासनमें ईश्वरकतत्वका विचार करते समय प्रसंगवश अधिकरणसिद्धान्तके स्वरूपको द्योतित करने के लिए उद्धृत किया गया है।
उपर्युक्त चारों ही सूत्रोंके साथ न तो ग्रन्थका नाम आया है न कर्ताका । 201सौन्दरनन्द और सत्यशासन-परीक्षा
. सौन्दरनन्द महाकाव्य बौद्धदर्शन तथा संस्कृत-साहित्यका एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्य है । साहित्यको रस और अलंकारपूर्ण शैली में अश्वघोषने सर्वप्रथम बौद्ध चिन्तनको जनमानस तक पहुँचाने का प्रयत्न किया। विद्यानन्दिने सौन्दरनन्दके निम्नलिखित दो पद्य सत्यशासन-परीक्षामें उद्धृत किये हैं१. “दीपो यथा निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् ।
दिशं न कांचिद्विदिशं न कांचित् स्नेहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ॥ जीवस्तथा निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न कांचिद्विदिशं न कांचित् मोहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ॥"
[सौन्दर० सर्ग १६, श्लो० २८, २९] उपर्युक्त दोनों पद्य बौद्धाभिमत मोक्षका विवेचन करने के लिए बौद्धशासन-परीक्षाके पर्वपक्षमें प्रमाण रूपसे 'तदुक्तम्' कहकर उद्धृत किये गये हैं। [११] प्रशस्तपादभाष्य और सत्यशासन-परीक्षा
प्रशस्तपादभाष्य कणादके वैशेषिकसूत्रपर आचार्य प्रशस्तपाद-द्वारा लिखा गया भाष्य है। इसमें विस्तारके साथ वैशेषिक सिद्धान्तोंका विवेचन किया गया है। प्रशस्तपादभाष्यपर व्योमशिवाचार्यकी व्योमवती टीका है। इस टीकाके साथ भाष्य भी सूत्रग्रन्थ-सा बन गया है।
सत्यशासन-परीक्षामें विद्यानन्दिने प्रशस्तपादभाष्यके अनेक सूत्र वैशेषिकदर्शनके प्रकरणमें उदधत किये हैं। [१२] शृङ्गारशतक और सत्यशासन-परीक्षा
महाकवि भतृहरिके तीन शतक १. नीतिशतक, २. शृङ्गारशतक, ३. वैराग्यशतक प्रसिद्ध हैं। १. सत्य. नैया०६१ २. सत्य० वैशे०६४ ३. वही २४ ४. वही ६३५ ५. सत्य० बौद्ध०६५ ६. सत्य० वैशे०६१-३, प्रश० मा० पृ० ६,८,१०-१६
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